बताना जरा दर्द का रंग क्या होता है,
जब अपने रंग बदले तो उससे बचने
का ढंग क्या होता है,
दर्द के वक्त ही तो पता होता है के
अपने संग क्या होता है।-
वफा में यू किसी को बेवफाई न दे..
यूं दगा देकर अब कोई सफाई न दे..
तू भी हो कैद किसी बेवफा की मोहब्बत में..
खुदा तुझे उस मोहब्बत से कभी रिहाई न दे ।-
यूं तेरी जुल्फोंसे खेलता हुआ..
शायद वो रकीब था,
इस रिश्ते में तो सिर्फ हम थे..
फिर वो कैसे तुम्हारे इतने करीब था,
छोड़ जाना था तुम्हे हमको तो छोड़ देते..
ये तो ना कहते..शायद यही हमरा नासीब था!-
वो चला गया है मीर..
तू क्यों उसकी राह में है अब तक,
वो छोड़ गया है तूझे तन्हा..
तू क्यों उसकी चाह में है अब तक!-
ना कर यूं सितम,
क्या तुझे मेरी वफा पे जर्रा सा भी रहम ना आया..?
कतरा कतरा बह रहा हूं यूं ही,
बिखरा हूं इस कदर की दोबारा कभी सिमट ना पाया।
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अब यूं ना करना मीर...
अब किसी से वफा न करना मीर,
इस जुबां से रूठे हैं बहोत से लोग...
ख़ामोश रहना...
अब किसी को खफा ना करना मीर!
और कहते हैं के, इश्क़ और जंग में सब जायज है,
पर तुम रकीब पे भी जफा न करना मीर!
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ये सिलसिला यूं ही मुसलसल चलता रहेगा,
इश्क का रंग यूं ही चढ़ता उतरता रहेगा,
अब यूं न पूछो दास्तां- ए- इश्क हमसे...
मीर उम्र भर अब आशिकी से डरता रहेगा।
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क्यों जुड़ता इस जहां से तू...
इक दिन ये गुजर ही जाएगा,
कितना भी तू समेट ले यहां,
इक दिन ये बिखर ही जाएगा।-
है ये पता जाना ही है..
राहों से तेरी दूर मुझे,
मुमकिन नहीं है मेरे लिए
पर भूलना ही होगा तुझे!-
आ फिर जिएं वो शामें वही...
आ फिर वही बातें करें...
बेचैनियों के फिर सिलसिले हो..
फिर दिल मेरा ये आहें भरे!-