Aayushi Saxena   (Aayushi(penofwords))
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Joined 17 April 2020


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19 MAY 2022 AT 11:50

जब नदी पार कर कोई नाव न बचे,
जब घर लौटने की कोई राह न बचे,
हो घनघोर अंधेरा कोई मशाल न बचे,
तपती धूप में चलो कोई छाँव न बचे,
तूफानो से लड़ो ,जीत की कोई आस न बचे,
खाकर लाखो ठोकर हार का एहसास न बचे,
समझ लेना मंजिल के करीब हो तुम,
कोई और नही खुद अपना नसीब हो तुम,
हाथ पर तकदीर तुमने खुद उकेरी है,
जो शतरंज सी है ये दुनिया,
फिर विसात भी तेरी है और चाल भी तेरी है!!

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26 AUG 2021 AT 23:24

आरम्भ का आधार हूँ, मैं सूर्य का प्रकाश हूँ,
मैं शून्य पर खड़ा हुआ,अंधेरो में यूँ घिरा हुआ
जो मुश्किले हजार है,तो क्या नई ये बात है,
अब हारने को कुछ नही,जो साथ थे वो अब नही,
अब ठोकरो से क्या डरूँ, जो स्वयं ही चट्टान हूँ,
विचलित नदी का वेग मै, प्रचड़ कान्ति तेज मैं,
समुद्र सा जो शान्त हूँ,प्रलय का शंखनाद हूँ,
आरम्भ का आधार हूँ,मैं सूर्य का प्रकाश हूँ।

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26 JUL 2020 AT 16:58

एक युद्ध था ऐसा भी,
जब दुश्मन, पहाड़ी पर चढ बैठा था,
इरादे थे नापाक, वो खुद को पाकिस्तान कहता था,
लगा उसे वो जीत गया, वो कैसे ये भूल गया?
भारत माँ के बेटे जो सरहद की रक्षा करते है,
हिमालय से ऊँचा है साहस, वो दुश्मन से ना डरते है,
एक एक भारत के शेर ने, सौ सौ दुश्मन को चीर दिया,
जान गवा दी अपनी पर , तिरंगा को न झुकने दिया,
नमन उन अमर शहीद जवानो को जो देश पर जीवन वार गए,
इतिहास रच गए वो वीरता का, जो कारगिल में कुर्बान हुए
कितनो ने बेटे खोए ,कितनो ने सुहाग गवाए है
तब जा कर भारत को सुरक्षित रख पाए है!!!

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29 OCT 2021 AT 10:59

नींद नही आए तब,मन घबराए जब
सोचते है रातों में,क्या खोया क्या पाया है,
जिंदगी के इस जोड़ घटाने में फिर हिसाब गलत आया है,
वो इस बार दिवाली पर घर नहीं जा पाया है!

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29 OCT 2021 AT 9:58

चकाचौंद वाली दुनिया में सुकून के दो पल ढूंढता है,
मजबूरियों के समंदर मे खुशियों की बूंद ढूंढता है,
ढूंढता है बचपन की मासूमियत को,
मां के आंचल वाली वो नींद ढूंढता है,
अनजानी भीड़ में कोई अपना सा ढूंढता है
कुछ यूं शहर में गांव अपना घर ढूंढता है!!

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19 OCT 2021 AT 22:40

चाँद है ये शरद का, सुहानी सी रात है,
सामने है वो बैठे, हाय! क्या बात है,
हवा है कुछ ठण्डी सी, घड़कनो की रफ्तार है,
दिल सम्भल जा जरा, ये इश्क की शुरुवात है |

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27 SEP 2021 AT 22:12

बेअदब थोड़ी बदतमीज सी है ,
ये जिन्दगी भी अजीब सी है ,
जो सोचूँ जरा बाँध लूँ,
मै वक्त को ही थाम लूँ,
ये रेत सी फिसलती है,
और शाम सी यूँ ढलती है,
बेअदब थोड़ी बदतमीज सी है ,
ये जिन्दगी भी अजीब सी है ,

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31 AUG 2021 AT 0:56

कहो कृष्ण किस रूप भजू मैं,
कैसे तुमको मै पाऊँ?
करू अनंत वात्सल्य तुमको,
क्या यशोदा माँ हो जाऊँ?
या माखन चोरी करते पकडु,
और गोपी मै कहलाऊ?
करूँ प्रतीक्षा जीवन भर तेरी,
या राधा सी हो जाऊँ?
क्या पालू तुमको मन के भीतर,
और मीरा सी हो जाऊँ?
रुकमणी सी हो जाऊँ क्या फिर,
जीवन भर साथ निभाऊ?
या हट करूँ तुम्हे पाने की,
और सत्यभामा सी हो जाऊँ ?
रोक लूं मार्ग वासुदेव का मैं,
क्या युमना सी बन जाऊँ ?
या मान सखा सौंप दूँ जीवन,
और द्रौपदी हो जाऊँ ?
कहो कृष्ण किस रूप भजू मैं,
कैसे तुमको मै पाऊँ?????

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9 MAY 2021 AT 0:18

तेरे होने से मै हूं, संग तेरे खुद को जान पाई हूँ,
सब कहते है मां, मै बिल्कुल तेरी ही परछाई हूँ,
हर मुश्किल से लड़ना मैंने तुझसे ही तो सीखा है,
तेरे बिन हर सुख भी मेरा थोड़ा सा तो फीका है,
गिन लेती है दिन मेरे बगैर जितने तू बिताती है
बिन कहे हर बात तू कैसे समझ जाती हैं?
परेशान न होना माना थोड़ा दूर हूँ मै,
डट कर खड़ी हूँ , तेरा ही गुरूर हूँ मै ,
मेरी खुशियो की खातिर ईश्वर से लड़ती है,
मां तेरी दुआए है जो साथ हमेशा चलती है!!

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8 MAY 2021 AT 20:39

कमरे में हूँ बंद मै, जब थोड़ी निराशा छाती है,
बाहर कमरे से बाते कर मुझे खूब हंसती है,
थक जाती है दिन भर काम करते वो ,
पर चेहरे एक शिकन तक न आती है,
रखती है सबकी सेहत का ध्यान ,
खुद की दवाई लेना भी भूल जाती है,
होता है सबकी जरूरतों का ख़्याल,
अपनी बारी पर सब कुछ तो है यही बताती है,
मांगती है दुआए वो घंटो बैठ भगवान के आगे,
शक्ति है सबकी वो, जो घर की "शोभा "बढाती है,
मातृ दिवस पर क्या कहूं और मैं ?
मां है वो ,जो घर को घर बनाती है!!!

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