यह कैसा दौर आ गया है? यहां गैरों से क्या शिकायत अपने- अपनों से दूर रह रहे.. और मैं चली थी, सबको समेटने.. यहां तो हर कोई बिखरते दिख रहे, भले मान भी लो अब तक तो बच गए हम.. पर नहीं पता कल किसकी बारी हैं जिंदगी और मौत की लड़ाई में सबसे दूर रहने में ही कहते समझदारी है... यह कैसा दौर आ गया है..?