कोई आये और जगाए मुझे,
या फिर, गहरी नींद में सुलाए मुझे...
भटक रहा हूं दर- बदर,
कोई आये, और मेरा ठिकाना बताए मुझे...
परेशान हूं इस शोर से,
कोई ख़ामोशी सिखाए मुझे...-
इन आंसुओं में हमदर्द मिला है मुझे,
रोकर सबसे ज़्यादा सुकून मिला है मुझे...-
खुशियों का जब मेरी जनाजा उठाया जाएगा
सुख यूं अंगारों में सुलगाया जाएगा
बचेगी सिर्फ राख जब
तब भी उसे देख दुःख आंसू ही बहाएगा-
अब नोंच ले जाए कोई बदन मेरा तो भी रह लेंगे,
जब अश्क ए इश्क़ पिया है तो ये भी सह लेंगे...
कहेंगे न अब किसी से कुछ, अपनी जबान सी लेंगे,
हसेंगे जब लोग इस हाल पे, तो ये भी ज़हर पी लेंगे...
रूह से कोई नाता ही न रहा तो जिस्मों में सेह लेंगे,
यूं तो मेरे जिस्म में कुछ बचा नहीं, गर बच गया हो तो तो उसे भी बेच देंगे...
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तुझ से बिछड़ के जाऊँ कहाँ कहाँ,
तू साथ है तो भला जाऊँ मैं कहाँ...
ये बंधन नहीं आज़ादी है,
अब ये भला ख़ुद को समझाऊँ कहाँ...
इस ज़िंदगी को तेरे नाम कर दिया है,
अपना नाम इससे खींच के तुझे कहूँ क्या भला...
अब न रोने में क़रार है, न सुकून हँसने में है,
ये बात सबको बताऊँ मैं कहाँ...
खुद से खुद की लड़ाई में,
बेवज़ह तुझको बीच में लाऊँ क्यूँ भला...
अब हो चला हूँ ख़ुद से इतना ज़ुदा,
कि दिल को जाके बहलाऊँ कहाँ...
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बहुत जल्दी थक जाता हूँ मैं,
कुछ सोचता हूँ और भूल जाता हूँ मैं,
न जाने क्या ग़म है मुझको,
बैठे बैठे ही रो जाता हूँ मैं...-
मन ही मन फिर जी लिया कुछ पुराने ख्वाबों को,
पर तुम्हें कुछ भी बताने से खुद को रोक लिया हो...
कैसे बन जाती है खामोशी, जुबां,
जब झोंका एक ठंडी हवा का इस दिल पे लगा हो...
तुम्हारे आते ही हर्फ़ जैसे बर्फ़ बन गए हो,
और उस चमकती धूप ने भी मन को भिगो दिया हो...
तुम्हारे पास आने और दूर जाने की उधेड़बुन ने,
जैसे मुझे फिर तुम्हारे ही पास लाकर छोड़ दिया हो...
तुम्हारी आवाज़ ने सुकून दिया,
तो JCB की हल्की सी आवाज़ ने शोर ही शोर कर दिया हो...
रहना तो चाहती थी तुम्हारे आग़ोश में,
पर हो सकता है तब तक सच्चाई ने परदा खोल दिया हो...
चाह कर भी नहीं निभा सकती वो रिश्ता,
शायद इसी बात ने फिर से दिल को तोड़ दिया हो...
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बादलों की ये बेसबरियाँ,
क्यूँ ले रही हैं इम्तिहान मेरे...
बढ़ा कर मेरी बेताबियाँ,
क्यूँ कर रही हैं ज़िंदा मुझे...
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आज फिर पुराने जख़्मों को हवा लगी है,
जो बारिश न बुझा पाए ऐसी आग लगी है...-