हृदय अब हो गया पत्थर, बहुत भावुक नहीं होता,
किसी से नैन मिलते है तो उत्सुक नहीं होता,
किसी पंछी के दिल में जब तीर लगता शिकारी का
तुम्हें मैं सोच लेता हूं तो , ज्यादा दुख नहीं होता।-
वक्त आएगा तो संभालूंगा जुल्फें तेरी ,
अभी उलझा पड़ा हूं OBD और ETHICS की Values में।-
'आलोचना' में छिपा हुआ "सत्य"
और
'प्रशंसा' में छिपा "झूठ"
यदि मनुष्य समझ जाये तो ,
आधी समस्याओं का समाधान अपने आप हो जायेगा।
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" खुश रहो"
छोटी सी तो ये जिंदगी है,
हर बात पर खुश रहो, कल किसने देखा है,
अपने आज में खुश रहो,
जो खुशियाँ तुम्हारे पास न हो,
तो उनकी आस में खुश रहो,
जो चली गई ये खुशियाँ ,
पुराने दिनों की याद में खुश रहो,
जो हो अकेले जिंदगी में,
कर किसी का इंतज़ार खुश रहो,
जो हो तुम्हें किसी से प्यार,
तो इजहार करके खुश रहो,
जो हो गिला शिक़वा तुम्हारे बीच,
तुम इसे मिटाकर खुश रहो,
जो गुनाह तुमने न किया,
उसकी माफी मांग तुम खुश रहो,
ये जिंदगी है यारों,
हर काम करके खुश रहो॥
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०४-११-२०२०
हम ,
सदियों से चलते हुए ,
थके हुए ,
हारे हुए ,
रोते हुए ,
दुःखों के बोझ से दोहरे हुए मनुष्य,
सिर पर मीलों फैला
नीला आसमान उठाए चल रहे हैं,
हम में से कोई कुछ देर के लिए
इसे ज़मीन पर क्यूँ नहीं रख देता..!
-©आYUष
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हम भारत के नागरिक हैं हमको लड्डू दोनों हाथ चाहिए।
बिजली बचायेंगे नहीं, बिल हमको माफ़ चाहिए।
पेड़ हम लगाएंगे नहीं लेकिन मौसम हमको साफ चाहिए
शिकायत तो हम करेंगे नहीं, कार्यवाही तुरंत चाहिए।
बिना लिए कुछ ना करे हम, पर भ्रष्टाचार का अंत चाहिए।
घर के बाहर ही कूड़ा फेंकू,शहर हमको साफ चाहिए।
काम करू न ढेले भर का, वेतन लल्लन टाप चाहिए।
लाचारो वाले लाभ उठाएंगे, फिर भी ऊंची साख चाहिए।
लोन मिले इनकी बहुते सस्ता, बचत पर ब्याज बढ़ा चाहिए।
धर्म के नाम पर रेवड़ियां खाएंगे, पर देश धर्म निरपेक्ष चाहिए।
वोट अपने जाति को ही देंगे हम,अपराध मुक्त राज्य चाहिए।
टैक्स हम काहे भरेंगे, पर विकाश में रफ़्तार चाहिए।
हम भारत के नागरिक है हमको लड्डू दोनों हाथ चाहिए।
® इक आम नागरिक-
हरिवंश राय की प्रसिद्ध पंक्तियों की प्रेरणा से,
शत्रु ये अदृश्य है
विनाश इसका लक्ष्य है
कर न भूल, तू जरा भी ना फिसल
मत निकल, मत निकल, मत निकल,
हिला रखा है विश्व को
रुला रखा है विश्व को
फूंक कर बढ़ा कदम, जरा संभल
मत निकल, मत निकल, मत निकल
उठा जो एक गलत कदम
कितनों का घुटेगा दम
तेरी जरा सी भूल से, देश जाएगा दहल
मत निकल, मत निकल, मत निकल
संतुलित व्यवहार कर
बन्द तू किवाड़ कर
घर में बैठ, इतना भी तू ना मचल
मत निकल, मत निकल, मत निकल
🙏-
संकट की इस घड़ी में कोई भी व्यक्ति
TV, Freeze,Mobile,Car लेने नहीं दौड़ा...
दौड़ा तो अन्न लेने... वहीं अन्न जो किसान उगाता है...
वही किसान जो तथा कथित लोगो की नजरों में,
गांव वाला...गरीबी में जीने वाला...
गोबर-मिट्टी में रहने वाला गंवार है...
आज बड़े-बड़े industries में पड़ गए ताले,
लेकिन किसान के चलते किसी घर में नहीं पड़े खाने के लाले।
जय जवान !जय किसान!
-Aaयू@ek किसान-
बद्तमीजी में भी,
मोहब्बत से पेश आते हैं,
बिहारी हैं हम ,
तमीज अपनी मिट्टी से पाते हैं।
-आयुष-
कभी वक़्त की मार
तो कभी अपनों का प्रहार
सहना पड़ता हैं,
कामयाबी यहां आसान नहीं है साहब
कभी तो खुद को भी भूल जाना पड़ता है,-