जुस्तजू- आरज़ू - रू-ब-रू तू -ही -तू!
ये - हक़ीक़त- ख़्वाब - सी है,
मेरे - ख़्वाब -की - ताबीर -तू - ही- तू!-
तेरे वजूद से ही बनता है मेरी रूह का अक्स,
तू ना हो तो बिखर जाए मेरे जज़्बात का रंग।
हर साँस में महसूस होता है तेरा एहसास,
तेरे बिना अधूरा सा लगता है मेरे हर पल !!-
कुछ याद आया तो हम लिखेंगे फिर कभी
इस वक़्त तो रूह बेचैन है तेरी तस्वीर देखकर।-
फ़ाक़ों में नहीं हैं हम, ज़मींदार बहुत हैं,
पाया है जो ख़ज़ाना, हमने तेरे साथ का।-
तासीर इश्क़ की बहुत बेहिस थी,
महसूस इश्क़ बहुत रूहानी हुआ।
जिसने न देखा कभी पलकों से मुझे,
वही ख्वाबों में मेरी निगहबानी हुआ।
लबों पे शिकवा न आया कभी,
दिल मगर रोज़ बेज़ुबानी हुआ।
जिसे समझा था बस एक अफ़साना,
वो हर साँस में इक कहानी हुआ।-
बातें मीठी ज़म्ज़म सी ख़ुबरू की है,
ए दिल! आब-ए-कौसर से वुज़ू की है।
नज़रों में बसी है तेरी इक पाक सी सूरत,
हर दफ़ा सजदे में दिल की जुस्तजू की है।
लब हिले तेरे तो जैसे दुआ हो बरसी,
तूने हर बात में इबादत सी आरज़ू की है।
तेरे तसव्वुर से महक उठती है रूह मेरी,
जिस तरह गुलशन ने बारिश से गुफ्तगू की है।
तेरी ख़ामोशी भी कुछ कहती है मुझसे,
जैसे तन्हाई ने तिलावत सी हूबहू की है!-
बेबसी
का
आलम
कुछ
इस
तरह है
आयत...
वो
हमारे
सामने
हैं,
मगर
पुकारा
नहीं जाता।-
एक लफ़्ज़ में भी तुम्हें लिख सकते हैं...
और एक किताब भी कम पड़ जाए...
बोलो तुम्हें "दिल" लिख दें...
या दिल के आईने में पूरी "किताब"?-