"आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहीं
सामान सौ बरस का है पल की ख़बर नहीं.."
- Mirza Ghalib
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हमने इश्क़ की किताब में, जब भी कोई मिसाल पढ़ी,
हर सफ़्हे पर बस उसकी ही, एक सीरत बेमिसाल पढ़ी।
वो जब भी पलकों को झुकाए, लगे सजदा किसी पाक चीज़ का,
हम कहते हैं मोहब्बत में, तर्जुमा है वो 'आयत' जैसी इबादत का।-
Qurbani teaches us
to give selflessly.
May we carry
this lesson forward.
Eid Mubarak!-
मेरी मुट्ठी में फ़रिश्तों ने उसे गूंथा था,
मेरे हाथों से फिर वो रंग उतरता कैसे..."-
सोच रही हूँ आज तुझसे वो कह दूँ...सारी बातें
जो मैं तुझसे किया करती थी.... जब हमारी बात भी नहीं हुई थी कभी।-
आजकल मैं बड़ी भुलक्कड़ हो गई हूँ,
ख़ुद को रख कर कहीं भूल गई हूँ।
कभी ख़्वाबों में थी, कभी बातों में,
अब उलझ गई हूँ सिर्फ़ ज़रूरतों की रातों में।
आईना देखूं तो अजनबी सी लगूँ,
मुस्कान होठों पे हो, पर जानी-पहचानी न लगे।
कभी किताबों में ढूँढा करती थी सुकून,
अब लफ़्ज़ों में भी वो मिठास नहीं रही ।
ख़ुद से मुलाक़ात किए ज़माना बीत गया,
कभी जो मैं थी, वो चेहरा कहीं छूट गया।
आजकल मैं बड़ी भुलक्कड़ हो गई हूँ,
ख़ुद को रख कर कहीं भूल गई हूँ।-
औरत को न पेशानी से बनाया,
कि मर्द पर वो हुक्म चलाए,
न पांव तले उसे रखा गया,
कि उसकी गुलामी अपनाए।
बल्कि अल्लाह ने बड़ी ही समझदारी से,
मर्द की पसली से औरत बनाई है,
ताकि दिल के सबसे क़रीब रहे,
और मोहब्बत की मिसाल बनाई है।
न ऊँचा, न नीचा उसका मुक़ाम,
दो जिस्म, मगर एक ही जान।
इक दूजे के लिए रहमत बने,
जैसे रूह में रब का नाम बसे।-
"याद करते थे तुम्हें, छोड़कर हर काम कभी"!
"याद आते हो तो अब ,काम पे लग जातें हैं"!-