जब अरमानों का कत्ल होगा,दर दर ठोकर खाओगे
आबाद रहें क्यों कहते हो, बरबादी का जश्न मनाओगे।
भड़क रही है आग मन में,कब तक यू ही झुलसाओगे
छोड़ अकेला जाएगे हम,तब तुम मुँह की खाओगे।
अस्त व्यस्त ही रहने दो कैसे मन को सुलझाओगे
खुद ही टांके भर लेंगे तुम ना उधडा सी पाओगे।
फटी है चादर जीवन की किस खुशी का जोड़ लगाओगे
जोड़ तोड़ की हालत में, तुम जख्म नया दे जाओगे।
छलनी हैं हम भीतर से, तुम कभी समझ न पाओगे
इश्क़ करोगे दूजे से, और हमसे नैन लड़ाओगे।
हार गया है लेखक कबका, कविता किसे सुनाओगे
हर पंक्ति पर वाह मिले, श्रोता ढूंढ कहाँ से लाओगे।
लाश पड़ी है चौखट पर कबसे उजड़े सपनों की
कब आओगे मय्यत में कब आँसू से आँख सजाओगे।
घड़ियां टिक टिक करती हैं,कब वक़्त से तुम लड़ पाओगे
छोड़ के साँसे चल देगे जब, खुशी में शोक मनाओगे।
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