हर शख्श शामिल हैं मेरे अरमानों के कत्ल में,
समझो जरा ये खुदखुशी नहीं, आत्महत्या है।-
मैं तो कोरे पन्नो की दीवानी हूँ,
जग का जोर नही चलता,
मैं अपनी मर्... read more
अफसोस में कोई जीये तो क्यो जिये।
दीद मुद्दतों बाद कोई किये तो क्यों किये।
क्यों जाहिर करें अफाज़-ए-मजबूरी
घुट-घुट के कोई जीये तो क्यो जीये।
आहिस्ते चुराई शब-ए-नींद आंखों से
जाम-ए-जहर कोई पीये तो क्यो पीये।
मेरी तरबीयत में है सुखन सादगी का
मस-अला कोई भी खड़ा किये तो किये।
ये तो अपनी ही अक्लमन्दी की बात है
सूई का कोई छुरी से सिये तो क्यों सिये।-
वो मिट्टी का संसार था और मिट्टी की थी काया,
सम्बंध बने थे प्रेम से पर कोई समझ ना पाया।।
जो हाथ बढ़ो का सर पे था कहाँ बढ़ो को भाया
बढ़ते-बढ़ते हाथ क्यो है पहुँच गले तक आया।।
कोई कड़ा करेला,मीठी शक्कर नीम डुबोकर लाया
वाह-वाह करके खा गए रिश्ते,ईश्वर कैसी तेरी माया।
कहीं सुकूँ की दो रोटी भी जो सुख से ना दे पाया
भरा कटोरा घी का जिसने बंद कमरे में गटकाया।
नभकर रिश्ते चलते है, नभ के नीचे रिश्ते पलते हैं,
गाँठ पढ़े तो टूटेंगे, कैसे एक-एक को है समझाया।
फूँस के छप्पर डालो सर, काड़ी रखदो घी में भीगी
चीख-चीखकर पूछो घर में तीली कौन है सुलघाया।-
सफर जाने क्या किस्मत में लिखा लाया है
उठ रही हैं लहरें मानो तूफान लौट आया है।
बेबस है जिंदगी इसे मंजिल की तलाश है
चलते रहो रुककर कहाँ कोई चैन पाया है।
कहो खुदपर भी कबतक भरोसा रखा जाए
दिन ढलते ही धुँधला होता खुदका साया है।
तूने बक्से में कैद कर फेंकी थी दरिया में यादें
फिर रेत के साथ पानी क्यों यादें बहा लाया है।
लहरों में भी यकीनन कोई तो जंग छिड़ी होगी
लहर पर लहर कहर कैसा ये कुदरत ने ढाया है।
किसी की हँसी किसीके आंसुओं की बजह है
खुदसे बेहतर कहाँ कोई किसीको भाया है।
मसअले हल हो अब ऐसी गुंजाईश भी नहीं
कोई आया किसीकी रुखसती सब माया है।-
आंखें गवाह थी सोये तुम भी नहीं।
ग़म-ए-हिज्र पर रोये तुम भी नहीं।।
कैसी मुश्किल थी समझने में हमें।
जो छंद मैं नहीं दोहे तुम भी नहीं।।
अंधेरे में छिपा था अतीत उसका।
न मिला वो तो खोये तुम भी नहीं।।
चश्म-ए-तर थीं फसी यादों में तेरी।
ये क्या पलकें भिगोये तुम भी नहीं।।
ज़ंग खा गया कैसे मरासिम हमारा।
पीतल मैं नहीं लोहे तुम भी नहीं।।
हाथ एक दूजे के कत्ल में सने थे।
दाग ईमान के धोये तुम भी नहीं।।
छोड़ दी फकीरी किस्मत देख कर।
बीज अमीरी के बोये तुम भी नहीं।।-
ये इशारे जो तुम मुझे बता रहे हो
खुल के कहते हो या छुपा रहे हो।
अब बेमानी से लगते हैं मुझे ये तारे
चाँद कह कर आईना दिखा रहे हो।
सूने दिन थे रूठी शामें रहती थीं
सोये अरमां क्यों दोबारा जगा रहे हो।
एक पुल बंधा है हमारे बीच कहीं
फासलें तुम, तारीफों से घटा रहे हो।
एक खामी है तुम कहते कुछ नहीं हो
लब सिले, इश्क़ काग़ज़ पे जता रहे हो।-
भूली बिसरी यादें हैं यादों में एक जवानी है
दोहरायेगा बच्चा बच्चा ऐसी एक कहानी है।
ठान लिया है जीवन में फिरसे आगे बढ़ने का
तुमसे हटकर ही जाना दुनिया कहीं बसानी है।
शोक मानेगा मातम होगा तेरे घर से जाने पर
तेरे इश्क़ बारबार ही मेरी आँखों मे पानी है।
जज्बात सारे झुलस गये जलते मन की आग में
कतरा कतरा राख हुआ क्या छूटी कोई निशानी है।
बाप का नाम मिला मिट्टी में इश्क़ करोगे सच्चा तुम
इश्क से रिश्ता सच्चा है या बाप से बईमानी है।
संग रहने से सजी थी खुशियां दुनिया साथ बसाने की
खुशियों को ठोकर मारी वो दुनिया मुझे भुलानी है।-
बेशक इस बात को नकारा नहीं जा सकता
शेर था वो जंग में ऐसे मारा नहीं जा सकता।
होंसले को उनके तहे दिल से सलाम हमारा
जिंदगी की इस जंग में हारा नहीं जा सकता।
कठिन है जीवन की डगर हाथ थाम लें सभी
तेरा गया है आदमी हमारा नहीं जा सकता?
घर के दीपक को आज बुझा कर आये हैं
हमारे सर से तेरा सहारा नहीं जा सकता।
मौत के हलक से उसने जीवन छीना था
मौत तेरी गोद मे दोबारा नहीं जा सकता।
हँसी ठिठोली में कह दिया था जाने तुझे
एक पल तेरे बिन गुज़ारा नहीं जा सकता।
तेरी थपकियां तेरे हाथों के निवाले को तरसू
छोड़ गया है तू ये ग़वारा नहीं जा सकता।
मेरी कलम टूट गई सुन सियाही में डूबकर
अब ये ढांचा हमसे सवांरा नहीं जा सकता।-
सुनोगे गर कभी गज़ले मेरे माशूक जन्नत की
तुम्हे आजायेगी फिर याद देखो रात जन्नत की।
कोई दोहरायेगा किस्सा कोई नगमें सुनाएगा
तुम्हें महसूस होगी फिर कभी बरसात जन्नत की।
सजे होंगे कई घोड़े लिवाने उनको आएंगे
लगेगी अर्श पर एक दिन कभी बारात जन्नत की।
है ये सपना सुहाना सा किसी अल्हड़ सी बेटी का
रहे रोशन तेरी गलिया सजे लमआत जन्नत की।
जो पूरा हो नहीं पाया मेरा एक छोटा सा सपना
तड़प जाएगी चिंगारी दिखा औकात जन्नत की।
मचल जाएगी वो सुनकर कभी जब बात उठेगी
यादों की रेल गुज़रेगी उठेगी बात जन्नत की।-
जब अरमानों का कत्ल होगा,दर दर ठोकर खाओगे
आबाद रहें क्यों कहते हो, बरबादी का जश्न मनाओगे।
भड़क रही है आग मन में,कब तक यू ही झुलसाओगे
छोड़ अकेला जाएगे हम,तब तुम मुँह की खाओगे।
अस्त व्यस्त ही रहने दो कैसे मन को सुलझाओगे
खुद ही टांके भर लेंगे तुम ना उधडा सी पाओगे।
फटी है चादर जीवन की किस खुशी का जोड़ लगाओगे
जोड़ तोड़ की हालत में, तुम जख्म नया दे जाओगे।
छलनी हैं हम भीतर से, तुम कभी समझ न पाओगे
इश्क़ करोगे दूजे से, और हमसे नैन लड़ाओगे।
हार गया है लेखक कबका, कविता किसे सुनाओगे
हर पंक्ति पर वाह मिले, श्रोता ढूंढ कहाँ से लाओगे।
लाश पड़ी है चौखट पर कबसे उजड़े सपनों की
कब आओगे मय्यत में कब आँसू से आँख सजाओगे।
घड़ियां टिक टिक करती हैं,कब वक़्त से तुम लड़ पाओगे
छोड़ के साँसे चल देगे जब, खुशी में शोक मनाओगे।-