मैं बिना पन्ने की किताब सी हूँ तुम खुद को लिखकर पूरा कर दोगे क्या ? मैं उस रास्ते सी हूँ जो रात में दिखता तक नहीं तुम उस रास्ते की मंजिल बनोगे क्या ? माना थोड़ी नासमझ सी हूँ तुम प्यार बनकर रूह में उतरोगे क्या ? और सुनो बहुत बोलती हूँ मैं तुम मुझे सुनने पास में बैठोगे क्या ?
जवान खड़ा सरहद पर बांधे हुए कफन सर पर। पता नहीं लौटेगा भी या नहीं बस इंतजार हो रहा घर पर।। बरसी गोलियां हर ओर से आया तूफान जोर जोर से। हुआ चौकना हर एक जवान धरती भी कापी शोर से।।
पसीना माथे पर, जोश दिलों में बरसाये कहर हर गलियों में। तिरंगे को झुकने दिया नहीं खुद लेटे हुए हैं जमी़नों में।। फिर ये देश किसी जवान का कर्जदार हो गया फिर एक घर बेरोज़गार हो गया। समय बीता और अब बेटा भी वतन का वफादार हो गया।।