جب عقیدہ درست نہ ہو تو نفس گمراہی کا نقاب اوڑھ کر انسان کو گناہ میں مبتلا کر دیتا ہے اور جب عقیدہ درست ہو تو وہی نفس انسان کی آنکھوں میں آنکھیں ڈالکر اسے گناہ کرنے کے لیے مجبور کرتا ہے۔ یقینا انسان بڑی مشکل میں ہے سوائے اس کے جس پر اللہ نے رحم کیا۔
जब अक़ीदा सही ना हो तो नफ़्स, गुमराही का नक़ाब ओढ़कर गुनाह करवाता है और जब अक़ीदा सही हो तो फ़िर यही नफ़्स, इंसान की आँखों में आँखें डालकर गुनाह करवाता है। बेशक इंसान घाटे में है सिवाए उसके जिसपर अल्लाह रहम करे।
ہر مومن کے لیے حضرت محمد ﷺ کی شفاعت/سفارش کی مثال, دنیاوی امتحان میں حاصل کردہ 'گریس نمبر' کی طرح ہے۔ جہاں ایک اچھا طالب علم اپنا امتحان 'گریس نمبر' کی ذمہ داری پر نہیں چھوڑتا، بلکہ امتحان پاس کرنے کے لیے سخت محنت کرتا ہے، یہاں تک کہ اگر اس کی محنت کے باوجود وہ کچھ نمبروں سے فیل ہو جائے، تب یہ 'گریس نمبر' بطور اس کی محنت کا صلہ/ انعام اسے ناکامی سے بچانے کے لیے دیے جاتے ہیں۔
हर मोमिन के लिये हज़रत मुहम्मद ﷺ की शफ़ाअत/सिफ़ारिश की मिसाल, दुनियावी इम्तेहान में मिलने वाले 'ग्रेस नंबर' की तरह है। जहाँ एक अच्छा स्टूडेंट (तालिब) अपना इम्तेहान 'ग्रेस नंबर' के भरोसे पर नहीं छोड़ता बल्कि इम्तेहान में पास होने के लिये मेहनत करता है फ़िर भी अगर उसकी मेहनत के बावजूद वो कुछ नंबर से फ़ेल हो रहा होता है तब ये 'ग्रेस नंबर' बतौर उसकी मेहनत के इनआम के तौर पर उसे फ़ेल होने से बचाने के लिये दिये जाते हैं।
जिसकी आंखों में हमारी तरक़्क़ी का ख़्वाब होता है जिसके सिर्फ़ होने से ही हमारा रुआब होता है अहले नज़र उसे आसमान जैसा कहते हैं वो शख़्स कोई और नहीं हमारा बाप होता है।
ईमां कहते हैं किसे ये भी कभी सोचा है या सिर्फ़ गोश्त चौपायों का तुमने नोचा है। शक होता है तेरे अहदे ईमान पर 'मिर्ज़ा' किया है ग़ुस्ल या बदन को सिर्फ़ पोंछा है।।