मैं और तुम, और ये चाय की गर्म चुस्कियां,
शरमाते से लम्हे हैं और बोलती सी ख़ामोशियाँ।
साँसों में घुलती हुई ये ख़ुशबू ए-जज़्बात,
होंठों पे ठिठकी हुई कुछ मीठी नादानियांँ।
चुपके-चुपके जब मुस्कुराती हैं तेरी निगाहें,
रूह तक महकाए ये प्यारी मेहरबानियाँ।
ये सादगी, ये नर्मी, ये अपनापन "आसिफ़",
बुन रहे हैं हर पल में मोहब्बत की कहानियांँ।-
माज़ी की जो आँधियाँ डराती थीं मुस्तक़बिल से,
आज वही हवाएँ बिखेरती हैं ख़ुशबू नये आग़ाज़ से।
दिल की वीरानियों में फिर उतर आई है चाँदनी,
सजने लगी हैं महफ़िलें फिर मोहब्बत के साज़ से।
ख़्वाब बिखरे मगर उम्मीद का दामन थाम लिया,
राहें रौशन होने लगी फिर उजालों के राज़ से।
ग़म की स्याही में भी मिलने लगा है नया नूर,
ज़ख़्म भरने लगे हैं दुआओं के नाज़ से।
तन्हाई में भी सुकूँ मिल जाता है "आसिफ़",
जब आँगन गूँज उठे तेरी यादों के आवाज़ से।-
हम-तुम .............और चाय की चुस्कियां
शरमाते से लम्हे ..और बोलती ख़ामोशियां-
तुम लाख मिटाना चाहोगे,
मैं फिर भी ना मिट पाऊँगा,
गर जमींदोज़ भी कर दोगे,
मै फिर से उभर आऊंगा।-
मुझे चिलमन से देख कर मुस्कुराने वाले,
यूँ मेरे दिल की तड़प को आज़माने वाले।
महफ़िल भी है उनके हुस्न पे क़ुर्बान मगर,
हम ही हैं ग़म-ए-तन्हाई निभाने वाले।
उनकी हँसी में है असर दवा से भी बढ़कर,
पर हम ही हैं ज़ख़्म-ए-दिल छुपाने वाले।
उनकी झलक भी है जलवा-ए-इश्क़ आसिफ़,
शायद इम्तिहान लेते हैं, सामने न आने वाले।-
न था तुम्हारे बग़ैर, न होगा तुम्हारे बग़ैर,
मेरा वजूद है रौशन, तुम्हारी ही सोहबत में।
हर एक साँस मेरी, करती है तुम्हारी तस्बीह,
लिपटी हुई है रूह मेरी, तुम्हारी ही रहमत में।
अज़ीम हो जाऊँ मैं, तुम्हारी अज़मत में, मौला,
शायद यही हो लिखा, मेरी हक़ीर क़िस्मत में।
तेरे बिना नहीं है कुछ भी, इस फ़ानी दुनिया में "आसिफ़",
एक अदना सा क़तरा है, जो डूबा है तेरी मोहब्बत में।-
अज़ीम हो जाऊँ मैं,
तुम्हारी 'अज़मत में,
शायद यही लिखा है,
मेरी क़िस्मत में।
न तुम्हारे बग़ैर था,
न तुम्हारे बग़ैर होगा,
मेरा वजूद है रौशन,
बस तुम्हारी निस्बत में।-
ये मोहब्बत को ठुकरा कर, जहन्नुम चुनने वाले लोग,
दौलत-ए-दिल ठुकरा कर, माल-ओ-दौलत चुनने वाले लोग।
सुकूँ-ओ-आ'फ़ियत ठुकरा कर, दर्द-ओ-अज़िय्यत चुनने वाले लोग,
रूह बेचकर दुनिया ख़रीदें, ये बे-हिसी चुनने वाले लोग।
नक़ाब चेहरे पे सजाकर, बातें करें हुस्न-ओ-इश्क़ की,
अंदर से बिल्कुल वीराँ निकले, ख़ाली मंज़िल चुनने वाले लोग।
जिन्हें चाहिए बस ताज-ओ-तख़्त, जिनके ख़्वाब हैं सरमाया,
कभी न समझ पाएँगे उनको, हम मुहब्बत चुनने वाले लोग।-
साथ रहते हुए भी, दरमियाँ दूरियाँ हैं,
शायद साथ रहने की, कुछ मजबूरियाँ हैं।
यूँ तो राज़-ए-दिल भी, निगाहों से पढ़ लेता हूँ,
पर मुलाक़ातों में भी जैसे, इक परदा दरमियाँ है।
यूँ तो हर सफ़र में वो, हमक़दम नज़र आता है,
पर रूह की गहराइयों में, छुपी कुछ तिश्नग़ियाँ हैं।
सुना है सितारे जब भी, अँधेरों से टकराते हैं,
तो चाँदनी बता देती है, कि रौशनियाँ कहाँ हैं।
मोहब्बत की राह में, ठोकरें भी दुआ देती हैं,
किताबों के सफ़ों में, इस दर्द की रहमतें बयाँ हैं।
ये फ़ासले भी शायद, मुक़द्दर हैं,"आसिफ़",
वरना मोहब्बत में हमारी, कहाँ कमज़ोरियाँ हैं।-