काली मिट्टी का रस्ता और टूटा पेड़ था जंगल का,
कौवे ऊपर मंडराते थे माथे पर लेप था चंदन का ।
कहा रुको.! मुझे एक पता बताओ इस जंगल का,
ये ज़ख्म भर दे मेरा जो वो पेड़ कहाँ है जंगल का ।
पडी विशुध शह ने आँखें मूँद ली अपनी जल्दी ही,
फूल, गुल, शम्स, क़मर और उसका चंचल मन था ।
लेकर उस शह बाहों में, मैं भूल गया वो जंगल था,
चीख सुनी ना किसी ने भी,शांत बड़ा वो निर्जन था ।
बदन मेरा फिर जलने लगा जान आयी शहजादी में,
जलकर खुशबू देने वाला मैं ही वो पेड़ था संदल का ।
सारा दृश्य फिर धुँधला हुआ सुबह हुई इस सपने की,
छोटा पर अच्छा था वो बिखरा सफर उस जंगल का।
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Love - Mahi(MSD) 🏏 & Bike 🏍️
My Own lines :-
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🕊 Early to Rise and Eerly to bed 🕊
🕊 I don't Know I'm Alive or Dead 🕊
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कितनी बार ये शख्स ये सोचकर ही सब्र कर लेता है,
कि छोड़ो ना, जाने दो, होता है, दुनिया है, चलता है।
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लोग बंदिश लगाते हैं अपने सनम पर
तुम पिंजरे से कैदी उड़ा देना 'आशू'
ये वादे, कसमें निभाते ज़माने के लोग
तुम 'कलम-ए-वफ़ा' निभा लेना 'आशू'
घर में बैठा वो शायर मर ना जाए कहीं
'मतलबी है ये दुनिया' बता देना 'आशू'
कोई पूछे वफ़ा कितनी निभाते हो तुम
उसको गर्मी में चाय पिला देना 'आशू'
कब धड़कना बंद कर दे ये शून्य हृदय
अपनी ओझल डायरी दिखा देना 'आशू'
लोग खो जाए जब अपने महबूब में
तुम सिगरेट का धुआं उड़ा लेना 'आशू'
मैं जब भी मरूं तो मेरी है ये ख्वाहिश
तुम मुझको 2-4 शेयर सुना देना 'आशू'
...to be continued..!!
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तुम उसके साथ बैठी, दो जिस्म इक जान की तरह,
तो अब इस बात पर मुझे क्या और क्यों मलाल हो।
मेरे हिस्से माथे का प्यार और रूह को छोड़ जाना,
उसके हिस्से में तेरे सुर्ख होंठ, जिस्म और गाल हो।
मेरे ख़्वाब में आके चाय के साथ इक शाम बिताना,
और उसका-तुम्हारा रिश्ता मुसलसल कई साल हो।
बताओ क्या पहनी हो पूछने की आदत को छोड़के,
'आशू' तुम आदमी बहुत बेमिसाल हो, कमाल हो।
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क्यूँ ये दरवाजे खुद-ब-खुद खुलते हैं,
क्यूँ खिड़कियाँ आपस में टकराती हैं ?
क्यूँ दिन साज़िश करने में गुज़रता है,
क्यूँ हर रात एक कतल कर जाती है ?
क्यूँ मैं जैसे ही मुस्कराने को होता हूँ,
क्यूँ फिर तेरी याद दखल दे जाती है ?
क्यूँ मैं तेरा रेत पे लिखा नहीं मिटाता,
क्यूँ तू मेरा पत्थर पे लिखा मिटाती है ?
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इश्क़ से नफरत...|
इश्क़ का मज़ाक.|
अपने होठों का तिल किसे दोगे.?
मेरे सीने का ये तिल नहीं लोगे.?
किसी पर दिल नहीं आएगा या.?
फ़िर दिल किसी को नहीं दोगे.?
हाथों में मेहंदी नहीं रखोगे या.?
फ़िर हाथ किसी को नहीं दोगे .?
बाहों में सोके सुकून नहीं लोगे या.?
फ़िर सुकून किसी को नहीं दोगे.?
थक कर मेरे गले से नहीं लगोगे या.?
फ़िर तुम गले किसी के नहीं लगोगे.?
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बदन कतरा रहा है, हांथ नम पड़ रहा है,
ज़ख्म और दो, ये जो है, कम पड़ रहा है ।
कुछ नया लिखने को राजी नहीं ये दिल,
खून से लिखे थे जो खत,वही पढ़ रहा है ।
सुकून-ए-क़ल्ब था, तेरे हर इक दीदार में,
अब तू दरपयश है वो भी कम पड़ रहा है ।
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अंजान :-
अंजान है ये दर्द मेरा और अंजान ये असर है।
अंजान है मंज़िल ये और अंजान हमसफर है॥
अंजान हूँ मैं मुसाफ़िर और अंजान ये डगर है।
अंजान है हर शाम और अंजान ये दोपहर है॥
अंजान हैं ये आँधियां और अंजान ये कहर है।
अंजान प्याला है और उसमे अंजान जहर है॥
अंजान है ये समन्दर और अंजान ये भंवर है।
अंजान है ये बागी और अंजान इसका घर है॥
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वो लिखती है -
सुनो शहरी जब थक जाओ तो फ़िर घर आना ।
मेरा हाथ लेना, रखना सर के तले और सो जाना ।।
कौन हो तुम, हो किसके दूत, कब आए, कब है जाना ।
बसरी यादें भी ना याद आयें मुझमे तुम यूँ खो जाना ।।
( मुन्तजिर रहने के बाद उसे एक पत्र मिलता है )
वो लिखता है -
हाँ मैं थक गया था फिर कई सौ मील चला।
ना घर मिला, ना तुम, ना हांथ और ना वो सोना ।।
मर गया हूँ बीच सड़क, एक कहना मान लोगी ?
मर जाना तुम भी मगर किसी और की मत होना ।।
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