क्या होता तुम होते हम और हम तुम होते।
कुछ ऐसा होता सूरज होता चांद और चांद सूरज होता।
फिर दिन होता रात और रात दिन होता।
कुछ अंतर ही नहीं हमको तुम और तुमको हम हो जाने में।
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कोई अपना सा लगा मुझे यह बात भी सपना सा लगा मुझे।
पहले चांद को देखा यह भी किसी कि तुलना सा लगा मुझे।
कई लम्हे उधार लिए फिर यह जुदाई जूर्माना सा लगा मुझे।
पहले नजर चुराए हमने फिर हर नजर नजराना सा लगा मुझे।
अलग था अश़्क जमाने से फिर यह भी जमाने सा लगा मुझे।-
तेरे याद में कितने सावन गुजारें हमने।
मगर शाख से झुले नहीं उतारे हमने।।
'अश़्क' उड़ गए चिड़िया बन अंडों से चुजे।
मगर बाग से घोंसले नहीं उजारे हमने।।
सुखे दरख्तों को उपर से छांटते चले गये।
मगर पेड़ों को जड़ से नहीं उखारे हमने।।
जिसने जो माना वहीं मान लीं हमने भी।
मगर बंटवारे के खातिर सिक्के नहीं उछाले हमने।।
#अश़्क
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भरोसा था ज्यादा उन पर, खुद पर भी थोरा रखा।
सारे जज्बात लिख डालें, मगर कागज़ कोरा रखा/
महज़ दिल ही तन्हा बनाया ख़ुदा ने,
बाक़ी आंख,कान,नाक, सबका जोड़ा रखा/
अश़्क उनके कदमों में भी फुल आए,
जिन्होंने हमारे राहों में रोडा रखा।
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हार पर प्रहार कर.....२
मत कर कुछ कर तो बस कमाल कर
'अश़्क' गैरों का ग़म नहीं अपनों से संभाल कर।
हार पर प्रहार कर .....२
अपने जीवन के अंधेरों का नया सुरज ईजाद कर।
खुद में भर हौसला और इस खाई को एक कदम में पार कर।
हार पर प्रहार कर.....२
लक्ष्य को साध अमोघ बान का संधान कर, फिर मंजिल को सफर मान नई मंजिल की तलाश कर
हार पर प्रहार कर.....२-
मौन रहना भी पाप हैं ``
मौन रहना भी पाप है, फिर घुट-घुट कर क्यों जिते हों।
नहीं है पांव में बेरी कोई, फिर रुक-रुक कर क्यों चलते हों।
कोई रहा नहीं अब अपना, फिर मुड़-मुड़ कर क्या देखते हों।
भर गई है पापों की झोली , फिर ठूंस-ठूंस कर क्यों रखते हों।
गुलाम नहीं हो किसी के, फिर झुक-झुक कर क्यों चलतें हो।
रक्तहीन हैं बदन गरीबों की, फिर चुस-चुस कर क्यों पीते हो।
खुद करते हो छलनी शीने को, फिर चुन-चुन कर क्यों सीते हो।
मौन रहना भी पाप है, फिर घुट-घुट कर क्यों जिते हों।
दर्द पिघलता नहीं आंसुओ से, फिर फुट-फुट कर क्यो रोते हो।
#अश़्क-
कोई सफेद सच को काले कोट से ढक रखा है
कहीं काले मन को ढकने का सफेद कुर्ता परिधान हैं कपड़े का व्यापार नहीं कपड़ा से व्यापार है .....२
साफ सुथरा को गन्दा कर धारे समझो वह भीखार है
जो अंशुक अर्धनग्न को धारे नया फैशन का शिकार है। कपड़े का व्यापार नहीं कपड़ा से व्यापार है .....२
कहीं इन सब को खुटी पर टांग नग्नता का बाजार हैं ''अश्ंक'' अब सफाक चादर डालें जाने को तैयार है।
कपड़े का व्यापार नहीं कपड़ा से व्यापार है .....२
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पता नहीं कैसे दिल के हर जज्बात की समझ होती है,
बिना कहे बिना सुने उसको मेरी बात की समझ होती है।कोई कहता है इसने किया होगा कोई कहता है उसने किया होगा, मगर है यह किसकी करमात उसको यह भी समझ होती है 'अश़्क' तुम्हें मिल जाएंगे यहां जीत के कई बाप मगर हार में भी साथ चलें वह केवल मां होती है।-
देवो मे अवधुत हो जो, उस महाकाल का दुत हु।
👑'मै राजपूत हु।'👑
अंदर अंदर धधक रहा हु,बाहर से मै सुप्त हु।
👑'मै राजपूत हु।'👑
मेवाड़ के महाराणा सा, मगध का चन्द्रगुप्त हु।
👑'मै राजपूत हु।'👑
शर कट जाऐ धर लड जाऐ ,मै वो शिरकटा भुत हु।
👑'मै राजपूत हु।'👑
जब हो आशिष माँ भावानी का,शत्रु का यमदुत हु।
👑'मै राजपूत हु।'👑
वचनपालन मे शिशो का कटाना मै मानता शुभमुह्रूत हु।
👑'मै राजपूत हु।'👑-