आशिष सिंह राजपूत   (अश़्क)
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🇮🇳🇮🇳🇮🇳 bihar (saran )
Mob no. :- 9693622408
Joined 14 April 2018


🇮🇳🇮🇳🇮🇳 bihar (saran )
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भरोसा था ज्यादा उन पर, खुद पर भी थोरा रखा।
सारे जज्बात लिख डालें, मगर कागज़ कोरा रखा/
 महज़ दिल ही तन्हा बनाया ख़ुदा ने, 
बाक़ी आंख,कान,नाक, सबका जोड़ा रखा/
अश़्क उनके कदमों में भी फुल आए,
जिन्होंने हमारे राहों में रोडा रखा।

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हार पर प्रहार कर.....२
मत कर कुछ कर तो बस कमाल कर
'अश़्क' गैरों का ग़म नहीं अपनों से संभाल कर।
हार पर प्रहार कर .....२
अपने जीवन के अंधेरों का नया सुरज ईजाद कर।
खुद में भर हौसला और इस खाई को एक कदम में पार कर।
हार पर प्रहार कर.....२
लक्ष्य को साध अमोघ बान का संधान कर, फिर मंजिल को सफर मान नई मंजिल की तलाश कर
हार पर प्रहार कर.....२

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मौन रहना भी पाप हैं ``
मौन रहना भी पाप है, फिर घुट-घुट कर क्यों जिते हों।
नहीं है पांव में बेरी कोई, फिर रुक-रुक कर क्यों चलते हों।
कोई रहा नहीं अब अपना, फिर मुड़-मुड़ कर क्या देखते हों।
भर गई है पापों की झोली , फिर ठूंस-ठूंस कर क्यों रखते हों।
गुलाम नहीं हो किसी के, फिर झुक-झुक कर क्यों चलतें हो।
रक्तहीन हैं बदन गरीबों की, फिर चुस-चुस कर क्यों पीते हो।
खुद करते हो छलनी शीने को, फिर चुन-चुन कर क्यों सीते हो।
मौन रहना भी पाप है, फिर घुट-घुट कर क्यों जिते हों।
दर्द पिघलता नहीं आंसुओ से, फिर फुट-फुट कर क्यो रोते हो।
#अश़्क

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कोई सफेद सच को काले कोट से ढक रखा है
कहीं काले मन को ढकने का सफेद कुर्ता परिधान हैं कपड़े का व्यापार नहीं कपड़ा से व्यापार है .....२
साफ सुथरा को गन्दा कर धारे समझो वह भीखार है
जो अंशुक अर्धनग्न को धारे नया फैशन का शिकार है। कपड़े का व्यापार नहीं कपड़ा से व्यापार है .....२
कहीं इन सब को खुटी पर टांग नग्नता का बाजार हैं ''अश्ंक'' अब सफाक चादर डालें जाने को तैयार है।
कपड़े का व्यापार नहीं कपड़ा से व्यापार है .....२

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पता नहीं कैसे दिल के हर जज्बात की समझ होती है,
बिना कहे बिना सुने उसको मेरी बात की समझ होती है।कोई कहता है इसने किया होगा कोई कहता है उसने किया होगा, मगर है यह किसकी करमात उसको यह भी समझ होती है 'अश़्क' तुम्हें मिल जाएंगे यहां जीत के कई बाप मगर हार में भी साथ चलें वह केवल मां होती है।

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समझो इतिहास के पन्ने पर भी नाम पा लिया।
अश्क जो तु वक़्त से पहले मुकाम पा लिया,

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भला वक्त की हिकारत से बचा कौन सा वीर है।

अश़्क हिफाजत कर वक्त का बस यहीं एक तदबीर है।।

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लगता है आना उनका।
'अश्क' आखों से अब न तुम जाते हो न चेहरा उनका।
भुल चुका हु बाते सभी बस याद आता है मुस्कुराना उनका।
शायद इस आजादी से अच्छा लगता था हक जताना उनका।

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कब तलक जीना होगा
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ऐ माझी ले चल बिच मझधार पर
रखा क्या है अब इस समुद्र के किनारे।
'अश़्क' लगता है सब को मालूम है हालत मेरे,
अब कहां कोई पुछता है 'और क्या हाल है प्यारे'?


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