मौन रहना भी पाप हैं ``
मौन रहना भी पाप है, फिर घुट-घुट कर क्यों जिते हों।
नहीं है पांव में बेरी कोई, फिर रुक-रुक कर क्यों चलते हों।
कोई रहा नहीं अब अपना, फिर मुड़-मुड़ कर क्या देखते हों।
भर गई है पापों की झोली , फिर ठूंस-ठूंस कर क्यों रखते हों।
गुलाम नहीं हो किसी के, फिर झुक-झुक कर क्यों चलतें हो।
रक्तहीन हैं बदन गरीबों की, फिर चुस-चुस कर क्यों पीते हो।
खुद करते हो छलनी शीने को, फिर चुन-चुन कर क्यों सीते हो।
मौन रहना भी पाप है, फिर घुट-घुट कर क्यों जिते हों।
दर्द पिघलता नहीं आंसुओ से, फिर फुट-फुट कर क्यो रोते हो।
#अश़्क
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