वो लाल था बस एकलोता फिर भी, वतन पे उसको हार दिया,
वो नूर था बूढी आँखों का, जिसको वतन पे वार दिया।
वो सजता था जिसकी मांग में, बस अब वो यादों में ही रह गया,
चूड़ी, बिंदी और सुहाग मेरा, इस देश की खातिर वो साथ अपने ही ले गया।
धुंदली सी यादें अपनी, उन नन्ही आँखों में दे गया,
खिलोने की पिस्तौल नन्हे हाथो में थमा कर, असली गोली सीने पर सेह गया।
अपनों को पीछे छोड़ उसने, वतन को आगे बढ़ाया है,
अपने वतन की आन की खातिर, उसने अपने प्राण गवाया है।
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