तन्हा नहीं हम तुम्हारी तस्वीर से बात करते है
हर वक़्त हम तुम्हे अपने दिल में रखते हैं
जमाने की नजर से तुम्हें बचा कर रखते हैं
तुम्हारी तस्वीर को सीने में छुपा के रखते हैं
थक कर चूर तो जिस्म होता है
तुम्हारी रूह से मेरा रिश्ता और गहरा होता है
तुमसे मेरा रिश्ता जिस्म का भले ना हो
पर ग़ज़ल में चेहरा तुम्हारा दिखता है
मेरी हर ग़ज़ल में सिर्फ तुम्हारा ज़िक्र आता है,
कागज़, कलम छोड़िये, पन्ना पन्ना इतराता है
ना जाने शब्द कहां से खुद बखुद मिल जाते है
इन सभी शब्दों में अहसास तुम्हारा होता है
मिली नहीं हो तुम मुझसे कभी हकीकत में
पर विचारो में मुलाकात तुमसे अक्सर हो जाती है
बसा रहता है तेरा चेहरा मेरी आंखो में हर वक़्त
शायद इसलिए ही मुकम्मल मेरी गजल हो जाती है
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