शेन वार्न आप नोस्टलजिया हैं। बचपन में सचिन की बैटिंग और आपकी बोलिंग ही देखनी होती थी। आप उन खिलाड़ियों में से थे जिन्हे लीजेंड बनाने के लिए रिटायरमेंट का इंतजार नहीं करना पड़ा। वो हर मैच के दौरान लीजेंड बने रहे। अगर आपके बोलिंग एक्शन की नकल बचपन में नहीं उतारी या आपकी सीम पकड़ने की कला पे चर्चा नहीं की तो किसी का भी क्रिकेट प्रेम अधूरा माना जायेगा। कभी मेरे बच्चे बड़े हुए और उन्हें क्रिकेट में रुचि रही तो आपसे मैं उन्हें वाकिफ कराऊंगा और अपने बचपन से जिसे मैं सचिन, सहवाग, ब्रेट ली, लारा, रिकी पोंटिंग और आपने बिना पूरा नहीं मान सकता। यकीन नहीं हो रहा आप नहीं रहे। लेकिन सत्य यही हैं। आप हमेशा याद रहेंगे वार्न। ❤️
#ShaneWarne
#RIP-
हम सबको जिंदगी कभी न कभी बहुत मुश्किल लगती है फिर भी हम सब जी रहे हैं क्योंकि हमने जीने का फैसला किया हैं
यह चॉइस है हमारी और खूबसूरत है
अब एक फ़ैसला और करो आज,
कि जब तुम चुन सकते हो
तुम रोशनी को चुनोगे,अंधेरे को नहीं
तुम हौसले को चुनोगे,डर को नहीं
तुम आस्था को चुनोगे,अंधविश्वास को नहीं
मैं जानता हूं कि अभी मुश्किल है सब
मगर जानते हो कितने पीछे से आए हो?
बस इसलिए कि तुमने चुना था चलना
और तुम्हारी चॉइस मायने रखती है-
देखी है न उम्मीदी,अपमान देखा है
न चाहते हुए भी,खुद का गिरता आत्मसम्मान देखा है
सपनो को टूटते देखा है,अपनों को छूटते देखा है
हालात की बंजर जमीन फाड़ कर निकला हूँ
बेफिकर रहिये,मैं शोहरत की धूप में नही जलूंगा
आप बस अपना साथ बनाये रखिये
मैं तो अभी और लंबा चलूंगा....!!
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मेरे आस पास मीलों दूर जहाँ तक नज़र जाती है मुझे दिखता है रिश्तों का एक समंदर...
शांत,सुकून सा सोचता हूँ...आखिर कैसे आऐ मेरे इतने करीब ...
जवाब खुद ही ढूंढ़ लेता हूँ...कुछ विरासत में मिले थे...
कुछ बनाये थे...कुछ खुद बन गए थे...कुछ अब तक ना बन पाए थे...जेहन फिर सवाल करता है...
तो फिर ये रिश्ते अलग क्यों होते है समय के साथ तो फिर ये रिश्ते क्यों आपको आपकी ज़रूरत पे साथ और हाथ नहीं देते ।
समंदर ,,,इतना शांत ....हां,बिलकुल सही इसकी लहरें भूल गई हैं
उछाल मारना साहिल से टकराना अट्टहास करना ...
शायद अब इनमे उत्साह नहीं रहा...वो ज़ज्बा नहीं रहा...कोई वजह नज़र आती है
कौन जाने हो सकता है यहाँ भी ग़लतफ़हमी हर रोज बढती अपेक्षाएं शिकायतों की गहमा गहमी...टूटती सीमाएं रंग दिखाने लगी हो😒
#ख़ैर-
शादी में कुछ आदमी हलवाई के पास कुर्सी लगाकर बैठे रहते है।ये ज्यादातर मामा जी, मौसा जी, फूफा जी, या जीजा जी होते हैं। ये कुछ भी जानते नहीं है , फिर भी चार पांच बार दोनों हाथ पीछे बांधकर हर चीज को देखते हैं और हलवाई को रटे रटाए प्रश्न पूछते हैं...
पकौड़ी में बेसन कम है ? पूड़ी थोड़ी नरम रखना, दूध पैतीस लीटर कहाँ गया ??
जलेबी थोड़ी पतली बनाना, गुलाबजामुन मे मैदा थोड़ा और बढ़ा , इतने काजू बादाम दिये थे कहां गये ।।
इन्हें ये काम सौंपने के पीछे बेसिक राज ये होता है कि शादी का काम शांति से निपट जाये...और ये ज्यादा उछल कूद ना मचा सकें ।😀
#अनुभव
#शादी_कामकाज-
आसान नहीं होता प्रतिभाशाली स्त्री से प्रेम करना,
क्योंकि उसे पसंद नहीं होती जी हुज़ूरी,झुकती नहीं वो कभी, जब तक न हो,
रिश्तों में प्रेम की भावना।
वो नहीं जानती स्वांग की चाशनी में डुबोकर,
अपनी बात मनवाना, वो तो जानती है बेबाकी से सच बोलना ।
फ़िजूल की बहस में पड़ना उसकी आदतों में शुमार नहीं,
लेकिन वो जानती है तर्क के साथ अपनी बात रखना ।
पौरुष के आगे वो नतमस्तक नहीं होती,
झुकती है तो तुम्हारे निःस्वार्थ प्रेम के आगे ।
हौसला हो निभाने का तभी ऐसी स्त्री से प्रेम करना,
क्योंकि टूट जाती है वो, धोखे से, छलावे से, पुरुष अहंकार से फिर नहीं जुड़ पाती,
किसी प्रेम की ख़ातिर ।
#स्वाभिमान-
हम देहात से निकले बच्चें गिरतें सम्भलतें लड़ते भिड़ते दुनिया का हिस्सा बनतें है
कुछ मंजिल पा जाते है कुछ यूं ही खो जाते है।
एकलव्य होना हमारी नियति है शायद।
देहात से निकले बच्चों की दुनिया उतनी रंगीन होती वो ब्लैक एंड व्हाइट में रंग भरने की कोशिश जरूर करतें हैं।
पढ़ाई फिर नौकरी के सिलसिलें में लाख शहर में रहें लेकिन हम देहात के बच्चों के अपने देहाती संकोच जीवनपर्यन्त हमारा पीछा करते है नही छोड़ पाते है
सुड़क सुड़क की ध्वनि के साथ चाय पीना अनजान जगह जाकर रास्ता कई कई दफा पूछना।कपड़ो को सिलवट से बचाए रखना और रिश्तों को अनौपचारिकता से बचाए रखना हमें नही आता है।
अपने अपने हिस्से का निर्वासन झेलते हम बुनते है कुछ आधे अधूरे से ख़्वाब और फिर जिद की हद तक उन्हें पूरा करने का जुटा लाते है आत्मविश्वास।
हम देहात से निकलें बच्चें थोड़े अलग नही पूरे अलग होते है अपनी आसपास की दुनिया में जीते हुए भी खुद को हमेशा पाते है थोड़ा प्रासंगिक थोड़ा अप्रासंगिक।
#सफ़र_दयाल_एजुकेशन_सेंटर_से_अब_तक_का
#पार्ट_२-
हम देहात से निकले बच्चे थे।
पांचवी तक घर से तख्ती लेकर स्कूल गए थे स्लेट को जीभ से चाटकर अक्षर मिटाने की हमारी स्थाई आदत थी कक्षा के तनाव में हमने खड़िया खाकर हमनें तनाव मिटाया था। कक्षा छः में पहली दफा हमनें अंग्रेजी का कायदा पढ़ा और पहली बार एबीसीडी देखी स्मॉल लेटर में बढ़िया G बनाना हमें बारहवीं तक भी न आया था।
हम देहात के बच्चों की अपनी एक अलग दुनिया थी , कपड़े के बस्ते में किताब और कापियां लगाने का हमारा अलग कौशल था। तख्ती पोतने की तन्मयता हमारी एक किस्म की साधना ही थी। हर साल जब नई कक्षा के बस्ते बंधते (नई किताबें मिलती) तब उन पर बासी ताव चढ़ाना हमारे जीवन का स्थाई उत्सव था।
साईकिल की रेस लगाना हमारे जीवन की अधिकतम प्रतिस्पर्धा थी।
स्कूल में पिटते मुर्गा बनतें मगर हमारा ईगो हमें कभी परेशान न करता हम देहात के बच्चें शायद तब तक जानते नही थे कि ईगो होता क्या है क्लास की पिटाई का रंज अगले घंटे तक काफूर हो गया होता और हम अपनी पूरी खिलदण्डिता से हंसते पाए जाते।
रोज़ सुबह प्रार्थना के समय पीटी के दौरान एक हाथ फांसला लेना होता मगर फिर भी धक्का मुक्की में अड़ते भिड़ते सावधान विश्राम करते रहते।
हम देहात के निकले बच्चें सपनें देखने का सलीका नही सीख पातें अपनें माँ बाप को ये कभी नही बता पातें कि हम उन्हें कितना प्यार करते है।
#सफ़र_शांति_स्कूल_से_दयाल_एजुकेशन_सेंटर_तक_का
#पार्ट_1-
मैं क्या था तुमसे मिलने के पहले एक सीधा साधा सा लड़का जिसे ना बाल संवारने का ढंग , बिना अंडर शार्टिग के शर्ट पहनने वाला लड़का , किसी लड़की से बात करने से सौ दफा सोचने वाला लड़का और जिसे इश्क़ का "इ" भी नहीं पता वो लड़का ।।
फिर एक दिन तुम्हे देखा सामने से आते हुए तो जिंदगी के आने का आभास हुए और फिर तुमसे मिलने से पहले मुझे इश्क़ का कुछ खास मतलब मालूम नही था,,
उसे मैं तुम्हारी आँखों से ही पहचान पाया था।
वो माथे की बिंदी जो तुम अक्सर
लगा लेती थी अपने सूट के साथ
वो इश्क़ का अनुस्वार मालूम होता था मुझे।।
मैं अपनी मुस्कान को अक्सर अपनी
होंठो तले दबा लेता था वैसे ही जैसे
वो हल्का सा काजल तुम्हारी कातिलाना नज़रों को नियंत्रित करता था।।
तुम्हारी मुस्कुराहट मेरे दिल की धड़कन बढ़ा देती थी ।।
वो बोलती आँखे,,शरारती आँखें
होश उड़ाती आँखे,,झुकती आंखें
किसी महत्वपूर्ण शीर्षक पर ख़ामोश आंखें,,
उन आँखों में देख कर ही तो
मैंने जीवन मे पहली बार महसूस किया था
इश्क़ को,,
और मान भी लिया था कि बस यही है इश्क़ ।
#इश्क़❤️-
शुरु से ही हिंदी माध्यम विद्यालय में पढ़ते आए हैं हिन्दी से खासा प्रेम है हमें..❤️
एक तुम थी जो हमेशा से सेब को apple ही बोलते आए और हम तो साला किसी मॉल में जाते तो शर्ट को भी बुशर्ट बोल देते हैं।
हम हैं जो एप्पी फिज़्ज को दारू ही समझते आए हैं।
तुम हो जो अंग्रेजी गाना सुनते आए हो,बीबर और माइकल जैक्सन भइया को पसंद करती हो और हम उनमें से जिसको जगजीत साहब की गज़ल और रफी साहब को सुने बिना नींद नहीं आती..❤
हमको पंकज त्रिपाठी की बातों से प्रेम है तो तुमको ऊ टॉम क्रूज की आँखों से।
पढ़ना तुम्हें भी पसंद है और मुझे भी,प्रेमचंद जी से प्रेम जैसा है और अब तो सत्य व्यास और नीलोत्पल भइया से प्रेम होता जा रहा है!! तुम iPhone के सच्चे सपने देखने वाले और हम किसी लेखक की नई उपन्यास खरीदने के लिए पैसे बटोरने वाले।
कभी आर.डी.बर्मन साहब का 'याद आ रही है' सुनना..❤️
ख़ैर..!
मानो या न मानो हिंदी में बोलना लिखना वैसे ही लगता है जैसे माँ के हाथ से दाल-भात खाना..❤
एक मैं हूँ जो साल में एक बार अपने जन्मदिवस के दिन सबसे याद किया जाता हूँ और एक तुम हो जिसे लोग 364 दिन याद करते हैं,1 दिन कम इसलिए क्योंकि इस दिन को मैं अपने साथ जोड़ता हूँ,और वो है हिन्दी दिवस।
एक दिन तुम्हें भी इश्क़ करवाएंगे जैसे हम करते हैं...
मुझसे नहीं इस हिन्दी से।
इंतजार करना..।
#हिंदी दिवस❤️-