आशीष परिहार   (आशीष परिहार)
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Joined 16 February 2018


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Joined 16 February 2018
17 MAY 2021 AT 22:59

किस भूल में हो तुम,
सच कहूँ तो समय की धूल में हो तुम।

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मुँह में राम बगल में छुरी,
इसीलिए लोगो से रहे सावधान और बनाये रखे दूरी।

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कोई बात थी मन मे तो पूछ लेते,
बिगड़े हुए हालात थे तो पूछ लेते,
अरे अपनी चिंता को यूं शक में न बदलो ग़ालिब,
अपनो से ही अगर सूनी रात थी तो एक बार पूछ लेते।

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22 JUN 2020 AT 23:29

दौड़ती हुई इस जिंदगी में एक हार हु में,
क्योंकि अपनी ही किस्मत से बेज़ार हु में।

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12 APR 2020 AT 22:31

काश सब जुठ हो और तुम सच हो जाओ,
लेकिन मुझे जलील करके थोड़ा तो तुम खुश हो जाओ।

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10 APR 2020 AT 22:41

तुम जो रिश्ते की डोर को यूं ढीला दे रहे हो,
ऐसा लगता है तुमसे रूठने का तरीका दे रहे हो।

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लोगो के चेहरे मेरी आँखों से आज पार हुए,
उनमे कुछ अपने थे बाकी सब बेकार हुए।

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समय का रुख बदलना है,
लोगो मे जो गुमान है ना आजकल,
उस गुमान को बदन से उतार कर जमी पे रखना है।

रूबरू जरूर होंगे एक दिन उन सब से,
जिन्होंने मेरे सर पर कुछ उधारी चढ़ा दी,
क्योंकि जेहन में हिसाब सबका का रखना है।

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19 JAN 2020 AT 19:06

जिंदगी यूँ ही ख़ाक में मिल जाएगी क्या,
ये जो सपने सँजो रखे है मेने अपने जेहन में यूँ ही राख में मिल जाएगी क्या।

छुपते छुपाते चल रहा हूं में अपने चंद बातों को जमाने से,
शहर से पूछो ये बात भी यूँ ही धीरे से निकल जायेगी क्या।

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13 NOV 2019 AT 21:12

उससे भारी ज़ख्म ले रहा हूँ में,
अपने प्यार के दर्द को मिटाने के लिए मरहम ले रहा हूँ में।

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