आशीष मुरादाबादी   (आशीष मुरादाबादी ब्रजप्रे)
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Joined 27 January 2021


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Joined 27 January 2021

खुद से मिलने कभी में छत आता हूं
सुकूं मिलता है तभी जब में थक जाता हूं।।

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मुझे मुझसे मिलने में
लगे बरसो
जिस दिन से मुलाक़ात हुई,
उस दिन से मैं मै न रहा।।

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बे वक्त बे वजह का शहर में
एक चश्मा सा है!
लगाता है तेज़ धूप होने को है।

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जारी रहीं!
सिवाए चेहरे के
रूह को बदलते नहीं देखा।।

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खुद को खुद से जोड़ कर रखना
सबमें इतना दम तो नहीं
सुख हो या दुःख सबके हिस्से आता है
ये भी रब की नेमत से कम तो नहीं।।

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प्यार मे बंदिश नही खुला छोड़ दीजीए
जिसकी मिसाल हमारे राधे श्याम से लीजिए।।

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हम लबों से।
वो बात दूसरी है कि
तू हमें हमारी तासीर से जानती है।।

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मौका मिला है एक जिंदगानी में
तो भजन करो जवानी में।
बुढ़ापा किसने देखा है
फिर क्यो पड़े हो निन्यानवे की कहानी में।।

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हम सब का उद्देश्य ईश्वर से पाना है
जबकि हमारा सौभाग्य ईश्वर को पाने में है।।

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मेरे रास्ते अलग है
इस भीड़ से परे
अक्सर लोग पूछते है मुझसे
तेरी राहें मंजिल किधर की है।।

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