ना घंटों insta पे बैठी है
ना facebook पे उसका accout है
उसको तो ये भी पता नहीं
की flipkart और myntra पे discount है
फोटो upload तो दूर की बात
एक selfie ना click कर पाती है
भूल गई जन्मदिन अपना
बस बच्चों का birthday मनाती है
हम तो बस phone के मोहताज होते
उनसे ही दुनिया की खुबसूरती दिखाई है
वो मां ही है जिसने बड़ी मासूमियत से
ये दुनिया हमारे लिए सजाई है।-
I'll Write to Explore... Not to... read more
होठों पे शिकायतों का काफ़िला
और आंखों में गले लगाने की तलब है
बातें नहीं हो रही कई हफ्तों से
पर एक दूसरे की जिंदगी से मतलब है
मन में हजारों बातें है तुम्हें बताने को
पर जुबान जैसे चलना जान नहीं रहा
उंगलियां बढ़ के तुम्हारे हाथों में फिसलना चाहतीं है
पर हाथ जैसे उंगलियों का कहा मान नहीं रहा
ये दूरियां मिटाना हम दोनों ही चाहते हैं
पर इन फासलों ने हमें बोहोत कुछ सिखाया है
एक दूसरे की कितनी एहमियत है हमें
इस फासलों ने ही तो दिखाया है
तो क्या हुआ जो नाराज़गी है दरमियां
एक एक कर सारी दूरियां मिटाएंगे
हमें अब एक दूसरे की आदत सी हो गई है
एक दूसरे को छोड़ अब कहा जाएंगे।-
वो किसी एक की न मानने वाली
मेरी हर बात मानती है
शायद वो मुझको मुझसे ज्यादा जानती है
मेरे घर आते ही मुझको
एक गिलास नींबू पानी का पकड़ाती है
शायद वो मेरी प्यास भी पहचानती है
मेरी पसंद का खाना
रोज मन लगा के पकाती है
शायद मेरी भूख का अंदाज मेरी शक्ल देख के लगाती है
मेरे परेशान होने से
वो भी थोड़ी उदास हो जाती है
शायद मेरे दिल का हाल अपने दिल से महसूस कर पाती है
जो मन उदास होता है मेरा
मेरे पास बैठ मेरा मन बहलाती है
हां...! वो सच में मुझे मुझसे ज्यादा जानती है-
बोहोत घमंडी हूं मैं
पर जब तुम्हारी साड़ी ठीक करने को जमीन पे बैठ जाऊं तो अपने तरफ मेरा झुकाव समझना
अकड़ के चलत हूं मैं
पर जब तुम्हारी पायल बांधने को तुम्हारे सामने झुक जाऊं तो खुद को मेरी चाहत समझना
हर बात पे गुस्सा आता है मुझे
पर गुस्से में भी घर से निकलते वक्त तुम्हारा माथा चूम के निकलूं तो खुद को मेरा प्यार समझना
परवाह नहीं किसी की मुझे
पर जब भरे बाजार तुम्हारा हाथ पकड़ के चलूं तो खुद के लिए मेरी परवाह समझना
मुझे झूठ बर्दाश्त नहीं किसी का
पर तेरे लाख झूठ पे भी तेरे साथ खड़ा मिलूं तो खुद को मेरा इश्क समझना-
मत पूछो के ये जिंदगी कैसे बशर हो रही है
क्या तुम्हें हमारी ज़रा भी फिकर हो रही है
ये मौसम ए बारिश जो धीरे धीरे गुज़ार रहें हैं
क्या बताए किस कदर तुम्हें हम पुकार रहें हैं
कि बस अब तुम्हें अपने क़रीब चाहते हैं हम
बरसों से यूं ही तुम्हें दूर से ही निहार रहें हैं-
अब पहले की तरह जिंदगी गुलजार नहीं रही हमारी
लोग जो थे साथ सब चले गए
की जिंदगी अब बाज़ार नहीं रही हमारी
अकेले में अब खुद से ही गुफ्तगू कर लेते हैं
जो बात करने को थे सब खामोश हैं
की जिंदगी अब समाचार नहीं रही हमारी-
उम्मीदें दगा देती हैं
भरोसा करने की सजा देती हैं
दिन रात खामोशी में डूब जाते हैं
जब अपनों से ही की उम्मीदें आपको वबा देती हैं
पर अब ये सब जान गया हूं मैं
कौन सच्चा कौन झूठा सबको पहचान गया हुआ मैं
इसलिए अब बस महादेव से आस रखता हूं
उस से उम्मीद लगा के ही खुश रहूंगा ये मान गया हूं मैं।
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बस एक बार भूल से ही भूलकर कह देते
के कोई और भी है साथ तुम्हारे अलावा हमारे
हम याद से तुम्हें भुला देते बिना वक्त गुजारे।
ये भूल हमसे हुई के हम भूल बैठे थे खुदको तुम में
अब जा के होश आया है के तुम तो कहीं और लीन थे
और हम जनाब! पास हो के भी तुम्हारे, गमगीन थे।
पर चलो! जो हुआ वो भी अच्छा ही हुआ
तुमसे छूट के हमने खुद से मुलाकात की
खुद का हाथ खुद पकड़ा और नए सिरे से शुरुवात की।
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जो बढ़ के माथा चूम लूं तुम्हारा
तो समझना, साथ तुम्हारा इबादत जैसा
जब तुम्हारे गालों को मेरे लब सहला जाए
तो समझना इस दोस्ती में अब पर्दा कैसा
जो हाथों को चूमने झुक जाऊं मैं आगे
तो सार्थक प्रेम कृष्ण और राधा जैसा
छू के गले को जो होंठ गुजर जाए मेरे
तो गले लग जाने में बाधा कैसा
कांधे पे सर टिका जो धीमे से चूम लूं
समझना ना संसार में कोई तुम जैसा
और जो होंठ मिले मेरे तेरे होंठो से एक बार
तो समझ लेना ना कोई और मिलेगा अब तुम्हें मुझ जैसा
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रिश्ते तो कांच की तरह होते हैं
छोटी सी चोट से टूट जाते हैं
कभी बड़ी बड़ी बातें सह जाते हैं
तो कभी बेवजह की बात से रूठ जाते हैं
बचपन में हुआ करता था रूठना, टूटना, और फिर हंस के मान जाना
छोटी छोटी बातों में खुशियां ढूंढ लाना
पर अब जो होश संभाल लिया है तो दिल संभालता ही नहीं
कहीं किसी बात पे ठहरता ही नहीं
बात बिना बात के बस अकड़ जाता है
मैं जो मानने भी बैठूं तो मेरी हर बात से मुकर जाता है
मैंने कहा, कभी कभी कुछ बातें अनसुनी भी कर देनी चाहिए
जो हो नाराजगी तो बिना कुछ कहे बस सह लेना चाहिए
पर ये सहना कब तक चलेगा
दिल में गुबार यूं ही कब तक रहेगा
पर खैर, बिना कुछ कहे हम सब सह गए,
मैं सही और तुम गलत की सोच में जाने कितने रिश्ते ढह गए।-