रिश्ते तो कांच की तरह होते हैं
छोटी सी चोट से टूट जाते हैं
कभी बड़ी बड़ी बातें सह जाते हैं
तो कभी बेवजह की बात से रूठ जाते हैं
बचपन में हुआ करता था रूठना, टूटना, और फिर हंस के मान जाना
छोटी छोटी बातों में खुशियां ढूंढ लाना
पर अब जो होश संभाल लिया है तो दिल संभालता ही नहीं
कहीं किसी बात पे ठहरता ही नहीं
बात बिना बात के बस अकड़ जाता है
मैं जो मानने भी बैठूं तो मेरी हर बात से मुकर जाता है
मैंने कहा, कभी कभी कुछ बातें अनसुनी भी कर देनी चाहिए
जो हो नाराजगी तो बिना कुछ कहे बस सह लेना चाहिए
पर ये सहना कब तक चलेगा
दिल में गुबार यूं ही कब तक रहेगा
पर खैर, बिना कुछ कहे हम सब सह गए,
मैं सही और तुम गलत की सोच में जाने कितने रिश्ते ढह गए।
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