"ठंडा मौसम, हल्की बारिश, हाथ में उसका हाथ था, चंद कदम हम साथ चले थे, आँख खुली तो ख्वाब था।"
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एक रात, एक बात लिखूंगा, ख़ुद को दाग़, तुझे साफ़ लिखूंगा ॥
हकीकत में तू कभी मिलेगा नहीं, एक किताब में अपनी मुलाकात लिखूंगा ।।-
तकिये भीग रहे खारे पानी से
किरदार जब से अलग हुआ है कहानी से
और मैं यहाँ किसी ओर लड़की से नजरे तक नही मिला पा रहा हूं
वो अपना लहंगा मिला रही किसी की शेरवानी से-
तबाही की दहलीज पर आकर खड़े हैं -
मत पूछो यह मंजर क्या है।.
बाहर से जरूर ठीक नजर आते हैं -
सच पूछो मेरे अंदर क्या है,
निकलते नहीं बूंद भर आंसू भी -
मेरी आंखों से ज्यादा बंजर क्या है।
टूटे हुए सपनों का दर्द इतना गहरा है कि -
मत नापों यह समंदर क्या है।-
खतम हो रही है नादानियाँ मेरी, मैं समझदार बन रहा हूँ कुछ न मिलने पर रोता था, सब कुछ खो कर हंस रहा हूँ
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फिर आया था त्योहार होली का, फिर मन में एक मलाल रह गया ।।
रंग लगाया है जाने कितनों को मैंने, सिर्फ उसके हिस्से का गुलाल रह गया ॥-
तुम्हें देखना, मिलना, छूना और बात है।
इन सबको केवल सोचना और बात।
जैसे तुम्हारे प्रेम में रह कर जीना और बात है।
जबकि साँस लेना और बात।-
मोहब्बत है उसको भी मगर इज़हार नहीं करती..”
ये कहना गलत होगा के वो मुझसे प्यार नहीं करती..."
मुझे खोने के डर से वो मेरी होने से डरती है..."
वरना मेरे इज़हार पे वो मुझको कभी इंकार नहीं करती.."-
बे-वक्त, बे-वजह, बे-सबाब सी, बे-रुखी तेरी..
फिर भी तुझे बेइंतहा चाहने की, बेबसी मेरी..!-