एक चिता, अधोमुख शव रखा था, मेरा, मैंने देखा है! हर भाव विकट विश्रान्त पड़े थे, शब्द निःशब्द हो वहीं धरे थे, क्षुधा में कोई क्षोभ नहीं था, चित्त शून्यवत व्याप्त कहीं था, व्यक्त-अव्यक्त-अतीत अचिंतन आनंद उत्स था! मैं ही शिव था!!
मेरे दिल का हर एक ज़ख्म मेरे दर्द की ज़ुबान है. मत छीन मुझसे लब मेरे, ये ज़ख्म तो पहचान हैं एक आशना, एक हमसफ़र, एक हम-नफ़स, हमराज़ के.. जो शौक़ में हो बेख़बर मेरे क़त्ल से अनजान है !!