कभी यूं ही चल लेना चार कदम साथ
उस दोराहे तक,
फ़िर बिछड़ने से पहले।
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अपने दिल के पन्नों से तुमने
हमें रुक्सत जो किया है,
तुमसे इश्क़ को कलम की स्याही से
हमने अमर कर दिया है।-
ज़रा तुमसे दरवाज़े बंद करना सीखना था,
तुमने चिटखनी तक पे ज़ंजीरें लगा दी,
और हम बेवकूफों की तरह
अधखुली झिर्रियों से तुम्हें देखते ही रह गए।
ज़रा तुमसे बिना कुछ कहे सब कुछ करना सीखना था,
तुम बिन कहे मिलों आगे निकल गए,
और हम चले जाएंगे कहकर बदनाम होते,
तुम्हें फ़िर देखते ही रह गए।
दिल ना तोड़ो हमारा के लगा बैठेंगे किसी और से,
इस आस में कि रोक लोगे हाथ थाम
एक पल में किसी और का हमसफ़र बनते तुम्हें,
बस देखते ही रह गए।
सोचा था अब बस,ना रुलाएंगे खुद को,
की अब ना बेइज्जत करेंगे इस इश्क़ को,
तुम अब भी लौट आओगे इस ख्याल में हम
फ़िर यह किस्सा लिखते रह गए।
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क्या गज़ब मजबूरी होती होगी
उन लोगों की भी साहब,
जिन्हें आसूं बहाने को भी
वक़्त का तख्मीना लगाना पड़े।-
आज शाम ज़रा नम सी बीती,
लगता है फिर किसी कोने में बैठी
तेरी आंखें बरसी होंगी।-
Does it happen with you,
When you open your eyes
After a deep sleep,
The bits of your world
Tends to fade away?
Does it happen with you,
When you want to live,
Just right, when you think,
Is when,
Life takes it all away?
Does it happens with you?
Or is just my fate
Too unrealistic for you to believe!-
Tomorrow I'd like to wake up
Maybe in a parallel universe,
Which is much less cruel.-
ऐ कायनात,
ज़रा एक रोज़ ऐसी बक्श
जहां मुस्कुराहटों के कर्ज़,
अश्कों से ना अदा हों।-
कलम में स्याही लाल आज फ़िर भर लूं,
आ,एक बार फ़िर भरोसा,
तुझ पे कर लूं,
दिल बेचारे को फिर तेरे नाम कर दूं,
जब टूटे तेरे हाथों बेरहमी से,
बेहते उस अश्क़ को,
कलम की स्याही कर दूं,
आ फिर इश्क़ तुझसे, नाकाम कर लूं,
आ फिर एक बार,
कलम में स्याही लाल,आज भर लूं।
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आज ज़रा दिल कुछ यूं गमजदां सा है,
कि ज़िंदगी ने फ़िर,
तजुर्बे की आड़ में क़िस्मत का
आइना सा दिखा दिया।-