चलो आज ख़ुद से इश्क लडाते हैं... ख़ुद से जान पहचान बढाते हैं... बहुत हुई माथापच्ची इन रिश्तों की... ख़ुद का हाथ थामे आगे बढ़ जाते हैं... अपनी आवाज़ को ही संगीत बनाते हैं.. जी भर के आज थिरक थिरक जाते हैं..!!.
अब भी एक सवाल जहन में बार बार आता है... ये दर्द कैसा जो आंसुओं में छलक जाता है... क्यों होते हैं हर वक़्त हम खुद से नाखुश..भला.. जबकि मालूम है..ख़ुद से भी कुछ पलों का नाता है... दुनिया रंगी है रंग में अपने.. मेरा रंग बेरंग सा लागे रे.. कुछ कह ना पाऊँ..कुछ सह भी ना पाऊँ.. मेरी परछाई भी अब..मुझसे भागे रे..!!
लुटने चला हूँ मैं..अपनों की खातिर.. मिटने चला हूँ मैं..उनके सपनों की खातिर.. 'संघर्ष' का दौर रहा..पत्थरों की चोट को सहा.. देखता रहा चुप रहा कुछ ना कहा.. कभी रोया.. ना सोया.. क्या पाया क्या खोया.. उनकी मुस्कराहट पर कुर्बान होया... एक उम्मीद भी अपने हिस्से ना आई.. वाह मेरे रबा..ये कैसी रुसवाई... खैर..सबक ज़िंदगी सिखा रही है... बिना बारिश 'कमबख्त 'भिगा' रही है.. दुआ इतनी..खुश रहना यारों.. मेरे अपनों मेरे प्यारों...!!
चलो..एक बार फिर हम Rechrge हो जाते हैं... ख्वाबों का एक नया आशियाँ बसाते हैं... कुछ पल जिंदगी के...ज़िंदगी से चुराते हैं... उनकी जीत की खुशी में ख़ुद को हार जाते हैं...!!💞