Aarti upadhyay   (Aarti Upadhyay✍)
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😊😊
Joined 16 May 2021


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Joined 16 May 2021
1 JAN AT 9:05

"एक रात को तेरी बस्ती में
कुछ चोर आए थे कश्ती में"

"उठा ले गए वो याद पुरानी
फिर शुरू हुई एक नई कहानी"

"पन्नों के कुछ अंक बदल गए
कहीं के राजा रंक बदल गए"

"लिखी जाएगी अब नई कहानी
भूल कर सारी बात पुरानी"

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23 DEC 2024 AT 23:33

अपने अन्दर झाँक रही थी,
वो खुद को कैसे भांप रही थी!!
नन्ही चिड़िया जान गई थी,
अब ये मंजिल आसान नहीं थी!!

उगते सूरज की वो किरणें,
बंद पिंजरे में भी आ पड़ी थीं!!
चाँद की रौशनी से रौशन,
बाजारों में भी शान बड़ी थी!!

तोड़ पिंजरा उड़ जाने को,
आँखें उसकी तरस रही थीं!!
अब उड़ जाने दे ए मनमौजी,
शोर में भी वो शांत खड़ी थी!!

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17 DEC 2024 AT 21:46

"एक अजनबी को अपना कहने लगा हूँ"
बस उसके लिए ही हर पल जीने लगा हूँ!!
"न पसंद था मुझे किसी से मिलना-जुलना"
अब तरशता हूँ उसकी एक झलक के लिए!!
"खट्टी मीठी सी उसकी बहुत याद हैं दिल में"
वो न सही पर उसकी हर एक बात है ❤ में!!
"नहीं है वो किसी सपनों की परी के जैसी"
अपनी ही सीरत से वो तो खुद महकी हुई है!!
"नहीं आता मुझे किसी को शिद्दत से चाहना"
बस उसके इश्क ने मुझे बना दिया है दीवाना!!

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11 NOV 2024 AT 21:14

वो पुरानी डायरी🗒

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30 OCT 2024 AT 21:42

॥यहाँ रौशन हो रही हर वो गली॥
॥जहाँ राम सिया की छाँव पड़ी॥
॥खुशियाँ घर-घर में गूँज रही हैं॥
॥सब नारी मिलकर झूम रही हैं॥

卐सुख,शान्ति और समृद्धि लाएं卐
卐माँ लक्ष्मी सबके घर में आएं卐
卐दीप जलाएं चलो द्वार सजाएं卐
卐आओ मिलकर दिवाली मनाएं卐

💫दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनायें💫
🌷 💥🦉💥 🌷

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10 OCT 2024 AT 15:35

'जब भंवरे फूलों पर आऐंगे'
और बगिया को महकाऐंगे।।

'चाँद तारे भी जमीं पर आएंगे'
और गीत खुशी के गाऐंगे।।

'जब गम सारे थक जाऐंगे'
और कदम तुम्हारे बढ़ जाऐंगे।।

'वो जीत के दिन भी आऐंगे'
और कामयाब तुम्हें बनाऐंगे।।

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5 OCT 2024 AT 23:32

दूरियां! हैं कितनी दिल फिर भी बेकरार है'
हर घड़ी हर पल बस उसका इंतज़ार है !!

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5 SEP 2024 AT 15:16

हे! गुरुवर तुम्हें प्रमाण है,
शीश झुकाए आसमान है।।
गुरूओं से हमें ज्ञान मिला,
तब दुनियां में सम्मान मिला।।
शिक्षक की शिक्षा है अनमोल,
याद रहेंगे जीवन भर यह बोल।।

"शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनायें"

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5 AUG 2024 AT 1:25

ए सनम बिछुड़े हैं जब से हम
हमारी तो "चाँद से बात बंद है"

होती थी हर रोज़ जो तुमसे
वो हसीं मुलाक़ात भी बंद है

पहले होती थी हर शाम दीवानी
अब तो वो बरसात भी बंद है

एक द़ूजे को चिढ़ाने वाले
वो हसी-मज़ाक भी बंद हैं

जो देती थी हमें सिर दर्द से राहत
वो तुम्हारी पसंद की चाय भी बंद है

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25 JUL 2024 AT 13:50

✍कलम लिए हाथों में,
शब्दों को संवरते देखूंगी।।

आज नहीं तो कल उसको,
लफ़्ज़ों में उतरते देखूंगी।।

स्याही से भरे पन्नों पर जब,
नजरें झुकाए ज़माना देखूंगी।।

लम्बे अरसे बाद अचानक,
मैं वक्त बदलते देखूंगी।।

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