ए दोस्त मेरा दिल दुखाने का शुक्रिया
बीच राह हाथ छुड़ाने का शुक्रिया
छोड़ कर साथ रकीबों से हाथ मिलाया
तुम्हारी इस बात के खुलने का शुक्रिया
हर चेहरे पर छिपा रहता एक चेहरा और
खुद का असली चेहरा दिखाने का शुक्रिया
कभी सम्हाला था तुमने मुझे हाथों से
उन्हीं हाथों से धक्का देकर गिराने का शुक्रिया
खुद को आईना बन तारीफों से नवाजा
खुद ही मुझे मेरे दाग दिखाने का शुक्रिया
जिंदगी मिलाए ना ऐसे लोगों से कभी
जितना मिला तुमसे हर बात का शुक्रिया-
ना देखना मेरी आंखों में कहीं इश्क़ ना ह... read more
एक दिव्य दिया मैं भी जलाऊंगी
गंगा के घाट पर तुम्हारे नाम का
अर्घ्य मैं भी दूंगी सूर्य भगवान को
जल चढ़ाऊंगी तुम्हारे नाम का
प्रतीक्षा करूंगी तुम्हारे आने की
रंगोली बनेगी जहां पेड़ हैं आम का
छठ में सभी लौटते हैं अपने घर को
इंतज़ार करूंगी मैं भी डूबती शाम का
मेरे अटके मन का कोना उसी घाट पर
जहां मिले थे छठ में वक्त था शाम का
नहीं आओगे तो यही से दुआ करूंगी जहां रहो
तुम भी दिया एक जलाना मेरे नाम का
छठ महापर्व की हार्दिक शुभकामनाएं-
हौसले को खुद के बढ़ाए रखना
पंखों को तेरे परवाज़ मिल जाए
जिस मंजिल पे हो नज़र तेरी
तुझे वो तेरी सौगात मिल जाए-
तू हो जाए हासिल ऐसा तो चाहा नहीं
एक जरा सी तवज्जो के मोहताज हैं हम
तेरी एक नज़र से होती मेरी दुनिया गाफिल
तेरी चाहत भरी नजर के तलबगार हैं हम
ज़माना इश्क़ को कब समझेगा लेकिन
मोहब्बत में तेरी इस कदर गिरफ्तार है हम
फिक्र मुझे ज़माने की नहीं कोई फ़कत
गर तुझे ना चाहे तो इश्क़ के गुनाहगार हैं हम-
हमारी दुनिया तुम जैसा कोई आया नहीं
तुम्हारे महफिल में होंगे हमारे जैसे
मोहब्बत के रंग बिखर गए हो जैसे तुम
बेनूर थे हम तुम्हारे आने से पहले
इश्क़ की वादियों में उतरने से डरते थे
हौसले बढ़ गए तेरे हाथ थाम कर चलने से
चाहत का सैलाब हैं जो तेरी आंखों में
हम डूबना चाहते है इनमें मरने से पहले-
वो कहते हैं दिल तोहफे में लाया हूं
मैं भी तो उन्हीं राहों का हमसाया हूं
उम्मीद से बहुत दिल को थमाया हैं
यक़ीनन तोहफा मुझे पसंद आया हैं
खिल गई हंसी उनके तब चेहरे पर
जब तोहफा कबूल मैने फरमाया हैं
इश्क़ में सौगातों की जरूरत नहीं लेकिन
दिल जैसा तोहफा कब किसी ने थमाया है-
नाकाम होते हैं सारे जतन मानने के
आखिरी हथियार हैं हक जताने के
होठों पर धर होठों से उन्हें मना लिया
हौसले धरे रह गए सारे उनके रूठ जाने के
मोहब्बत की अर्जियां होठों से लगाई हैं
खत के जवाब आएं बंद डाकखाने से
खुराफाती हो तो गए उनके बुलाने से
किस तरह नजर छुपाएं अब ज़माने से-
एक सपूत हमारे खाना खाते कम
I phone की डिमांड होती हरदम
नंबर अगर कम आए बेटा जी
समझ लेना डाटा हुआ मोबाइल से खत्म
पढ़ाई में मन लगाओ नखरे दिखाओ कम
लेना iphone भी दिखाकर एग्जाम में दम
खुली अकल बेटे की मोबाइल गया छोड़
पढ़ता हैं अब जम कर लेता नहीं मोबाइल का नाम-
चेहरे पर पड़ती हैं किरणें सूरज की
समझती हूं पड़ गई नज़र तेरी
चांद जिस घड़ी मुझे निहार देता हैं
समझूंगी हुई शहर में सहर तेरी
भटकता हुआ जिस दिन वो पहुंचे मुझ तक
समझूंगी मुकम्मल हो गई जिंदगी मेरी
इबादत करती हूं मांगती हूं दुआओं में
अर्जी कबूल कब तक हो मेरी-
जिसके निहारने से झुक जाती हैं नज़र मेरी
मोहब्बत में पड़ने में लगती नहीं जरा देरी
उसकी मुस्कुराहट पर फिदा दिल ओ जां
उसकी मोहब्बत से ही सांस चलती मेरी
उसकी ग़ज़लों में रहता हैं जिक्र मेरा ही
उसके शेर पढ़ कर होती हैं हर सुबह मेरी
उसके आते ही महफिल में छा जाता हैं नूर
उसका होने से खिल जाती हैं तबियत मेरी-