कबूल है मुझे कीचड़ में लिपटे पैर, क्यों कि बारिशों में भीगना मुझे पसंद है। कबूल है मुझे जिंदगी में पतझड़ का मौसम, क्यों कि सावन की हरियाली मुझे पसंद है। कबूल है मुझे तुम्हारी बेपरवाही, तुम्हारी आगोश ए मोहब्बत मुझे पसंद है।
मैं मस्तियों में मग्न था झूम रहा था भागे जा रहा था तुम मिली और मैं ठहर गया लगा कि जैसे शोर से भरे इस मन को सुकून मिल गया हो दिल में शांत लहर हिलोरे ले रही थी बस अब तुम्हारे साथ चलना चाहता हूं