किसी की तलाश थी
कुछ पाना था वही से ...
वक्त गुजर रहा था
ख्वाब छूट रहा है
देख रही थी दूर से .....
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क्या कहू तुम से
आदत जो बन गये हो तुम...
कहा रह पा रही हूं अब
तुम से बोले बिना..
नही सहना पड़े जुदाई
कुछ कहे बिना..
छूट ना जाए साथ कभी
कोई भाता नहीं अब तुम्हारे सिवा...-
शायद उन्हे,
हमसे प्यार करना आता ही नही।
पुँछती हुँ तो कहते है ,
प्यार तो करते है हम ,
पर हमे जताना आता नही ।-
रुसवाई होगी तो ,
तनहाई ही नसिब होगी ।
मन से अंतर मन को जान जाओगे ,
तो ही तो दिल की बात पहचान पाओगे ।-
खूप काही सांगायचं असतं ,
खूप काही बोलायचं असतं रे तुझ्याशी ...
पण काय करू ?
आवाज तुझा कानी पडताच,
फितूर होतात ,माझेच शब्द माझ्याशी...💞-
जुल्फ बिखरे ही इसिलीये है ,
इन्हे तुम से ही सँवरना चाहती हुँ।
फुरसत से आना महफील में हमारे ।
लिखती हुँ तुम पर जो शायरी मैं ,
कभी तुम्हे सूनाना चाहती हुँ .....❤️
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समोर तू नसताना ,
माझ्या शब्दांनी बिलगावे तुला..
शब्दांना न्याहाळावे तू,
गोंजारावेस त्यांना ,
पण स्पर्श व्हावा मला...💕-
तूच डोळ्यासमोर असतोस!
तुझ्यावरच तर लिहीत असते ....
कळत कसं नाही रे तुला ,
मी तुला साद घालत असते ? ....-
मन चाहा ,
कहाँ किसीं को मिलता है ?
जो मिला उसे नसिब का नाम देकर ,
उसी से समझौता करना पडता है।
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तेरे रंग मे रंग जाना ,
ये तो मेरी चाहत थी ।
अब तो आदत बन गयी......
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