Aarti Choudhary   (Aarti Choudhary)
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Joined 13 September 2021


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Joined 13 September 2021
11 APR AT 21:38

ज़ख्मों पर नमक लगाए गये है,
सोये हुए यहां जगाए गये है,
तुम रोटी का हिसाब लगाते हो ग़ालिब,
मुंह से निवाले छिन खाएं गये है,

खाया हैं कईयों ने हराम का नमक,
फिर भी डंक विषैले डसाए गये है,
तुम पुछते हो वफादारी की कीमत,
कुत्ते हमेशा गुलाम बनाए गये है,

गुलाम है सत्य का सुरज यहां,
कुछ इंसा ही कुत्ते काट खाएं गये है,
इंसान हैं यहां जानवरों से आगे,
जानवरों से ज्यादा वह खोफ बनाए हुए हैं।

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10 APR AT 19:34

जैसे शब्दों में मात्राएं,
वाक्य या कविता को अर्थ देती है,
उसी प्रकार यात्राएं,
जीवन शैली में परिवर्तन कर,
हमारे वर्तन में समर्थन करती है,
कुछ नया सिखातीं है,
कुछ अध्याय जोड़ती है,
जों जीवन के उद्देश्य को सफल करने में,
महत्वपूर्ण बिंदु ही नहीं,
स्वयं भाग्य या किस्मत का दरवाज़ा,
खोलने में सामर्थ्य रखती हैं ।

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10 APR AT 19:26

बालटी में दूध,
दूध में पानी,
चारे के भाव बढे,
तो हो रही हानी।

दूध का दही,
दही का छांछ,
ज्यादा न खाना,
हो जाऐगा सर्दी-जुकाम।

छांछ से बने घी,
घी से बने हलवा- मिठाई,
ताला लगा रखे अम्मा,
चुराओगे तो होगी पिटाई।

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9 APR AT 18:06

तु अच्छा इंसान दिखेगा...

अनुशीर्षक में पढ़े

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9 APR AT 17:48

राम राम कहिए,
हनुमत जप करिए,
प्रभु दुख हरिए।

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6 APR AT 20:13

एक लड़की होना इतना तो सहज नहीं,
हमने कब कहां कि हमारा कोई फर्ज नहीं,
कोई कहें तो नारी, बाहर निकलने में हर्ज नहीं,
दो पलड़े बराबर है ग़ालिब, इसके आगे कोई शर्त नहीं ।

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6 APR AT 20:08

जब अपने ही मुझ पर घात लगाए बैठे हैं,
मै आगे ना बढ़ जाऊ, कैमरे सी नजर गढ़ाए बैठे हैं,

मेरी गलतियां उनके लिए समाचार बन चूंकि है,
अपने ही शत्रुओं सा व्यवहार छुपाए बैठे हैं।

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31 MAR AT 13:53

नारी के मन की व्यथा.....

आगे अनुशीर्षक में पढ़े

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31 MAR AT 13:44

नारी नारायनी स्वरूपात है....

अनुशीर्षक में आगे पढें

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31 MAR AT 13:37

मैं बनाती हूं मुक्तक में कविताएं,

नहीं आती गिनती मुझे मात्राएं,

बनाकर तुमको जीवन संगीत,

करना चाहती हूं बारह ज्योतिर्लिंगों की यात्राएं।

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