आर्ची   (अर्चित)
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civil engineer
बस लिख देती हूं कागज पे कुछ ख्याल अपने
पेन और पेंसिल से यारी सी है
Joined 7 May 2019


civil engineer
बस लिख देती हूं कागज पे कुछ ख्याल अपने
पेन और पेंसिल से यारी सी है
Joined 7 May 2019
31 DEC 2022 AT 21:11

ये नया साल .....उमंगो की सौगात लाया है
सिमट गई पुरानी यादें ...
नए लम्हों की बरसात लाया है
ये नया साल .....उमंगो की सौगात लाया है
उजली किरणें ...उजला मन...
ये उजली हर बात लाया है
ये नया साल



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11 FEB 2022 AT 11:41

विद्या के मंदिर को क्यों
धर्म का अड्डा बना दिया
अरे नई पीढ़ी को ये
अज्ञान का पाठ किसने सिखा दिया
मौन है क्यों ?
अब तक संसद के गलियारे
इस राजनीति ने इस बार
देश के भविष्य को मोहरा बना दिया

— % &

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6 OCT 2019 AT 8:23

सोच रही हूं मैं
कलम की पूजा कर लूं
बहुत पैना शस्त्र है ....
जिसके के भी विरोध में चली है
फिर उसकी कहां चली है

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25 SEP 2021 AT 13:51

नाउम्मीदी जगह कर रही है दिल में कहीं
मैं हंस के टाल रही हूँ
अपने ही सपनों को

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24 SEP 2021 AT 19:05

उलझन भरा मन है
चैन कहां से पाऊं मैं
अक्षर अक्षर सीखने को लड़ी सबसे
अब अपने ही हिस्से से कैसे लड़ जाउँ मैं

तुमसे प्रेम है इतना कि
खुद को मिटा रही हूँ बस
लड़ने कि तुमसे
हिम्मत कहां से लाऊं मैं

उलझन भरा मन है
चैन कहां से पाऊं मैं

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24 SEP 2021 AT 18:55

कुछ भी मुझको
ना कुछ समझ पा रही हूँ
ना खुद को समझा पा रही हूँ

तो तुमको क्या बतलाऊं मैं.....

"समझ में नहीं आता"

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11 SEP 2021 AT 20:07

भविष्य राख हो गया ....आतंक कि आग में
पता नहीं किस जन्नत कि आस में ...
माँ का आँचल छल आए थे वो
उनको किस परिभाषा में उतारू मैं......जो आतंक ही आतंक फैला गए
मलबे में रह गई सिर्फ निशानियां ..वो तो अस्थियां भी जला गए

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30 AUG 2021 AT 12:42

हे कृष्ण
कहां बसे हो ?
जिस धरा कि माटी को मुख में धर ...
तुम कभी अभिभूत हुए ....
उस धरा पे
बिखरी हैं लाशें कहीं
कहीं बारूदी सुरंगों से हुई काली है

इक बार फिर स्वर दो पांचजन्य को
मनुष्यता मिटने वाली है
बैठे हैं कई कंश इस धरा पे
नियत बहुतों कि दुर्योधन से काली है
हे कृष्ण
कहां बसे हो ?

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22 AUG 2021 AT 10:59

ये जो डोर है प्रेम कि ...
इसी में बंध गए इस जगत के पालन हार
हर योद्धा खड़ा देख रहा........
कृष्णा (द्रौपदी) पे होता आत्याचार
बीच सभा में खड़ी द्रौपदी
माँग रही सत कि भिक्षा
नेत्र विहीन हो जब राजा ...
कैसे हो फिर सत कि रक्षा
जब हार गई कृष्णा(द्रौपदी) पुकार के हर नाता ....
तब याद किया मोहन को ...बचा लो मेरी लाज
आए फिर कृष्ण कन्हाई
...द्रौपदी का चीर हुआ अनंत ....
पूरा कौरव सामर्थ्य हारा.....
एक धागे कि डोर ने ...
कृष्णा(द्रौपदी) का चीर सँवारा
📿📿📿

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12 JUL 2021 AT 20:32

कि हम कोई गैर हैं

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