दिल को यूही अकेला गुनगुनाने दो , ये प्यार , मोहब्बत की ख्वाइशों को बस ख्वाबों में ही रह जाने दो , ज्यादा करीब से जाने से दोस्ती के रिस्ते भी टूट जाते है अक्सर , सुनो ; ये वफ़ा के किस्से तुम बस किताबों पढ़ो और किताबों में ही दफ़न हो जाने दो ~
अच्छा सुनो ! जाओ आज तुम्हें अपनी यादों से भी आज़ाद किया . तुम कहते थे ना क़ातिल हूँ मैं , जाओ मैनें भरी महफिल में खुद को गुनेगार करार दिया । पर सुनो ना ये हर किसी से नज़रे ना मिलाया करो , कातिल बहुत हैं यहाँ पर हर कोई गुनेगार बन जाएगा ; मुर्शाद_ ऐसी गलतफेमिया ना जहन में लाया करो // -
कौन हूँ , क्या हूँ , कहाँ हूँ , कैसी हूँ , क्या फ़र्क पड़ता हैं ; . . जिस रास्ते पे निकली थीं खुद की तलाश में , वो रास्ता छोटा और सरल ही हो ऐसा जरुरी तो नहीं हैं //-
मेरे लिए मुश्क़िल रहा तुमसे दूर जाना जैसे नामुमकिन सा होता हैं आस्माँ का जमीं से मिल पाना.. . . बिन इतिहास की किताबें और कहानियों के इतिहास को जान पाना.. . . ठीक वैसे ही ; मुश्क़िल रहा , बहुत मुश्क़िल , तुमसे दूर जा पाना //-
और मेरी हज़ार कोशिशों के बाद भी वो उसे लिखना ना छोड़ पाई... . मेरी ही कलम मुझसे खुदगर्ज़ी पर उतर आई... . उसे लिख कर , मुझे रुला कर , वो ना जाने कितने कागज़ो को स्याही से लपेट आई... . बेवफाई , विरह , क्या कुछ नहीं लिखा... पर अंत में उसे सिर्फ़ प्रेम ही लिख पाई !!