तमाम खुशियां खरीदकर कोई दिल के पार हो गया
मैं बैठा रहा हाथों में रंग लिए कागज बेकार हो गया
जब भी लगता मेरी खुशियां मेरे शहर को आ रही है
मैं सोचता था हर मंज़िल हर रास्ता गुलज़ार हो गया
ना किसी बंधन में बंधा था ना जरा-सी आजादी थी
मैं ढूंढता रहा जंजीरें यह तनहा दिल फराऱ हो गया
किस कलम को ढूंढता,किस किताब पर सर रखता
मैं चलता रहा अकेले हर साथ अधूरा ख्वाब़ हो गया-
मुस्कुराइए आप हमारे पेज पर हैं
Student l nature lover | Op... read more
यहां हर किसी को मालूम है, हम कौन हैं
इक हमीं है,जो खुद को पहचानते नहीं है-
जब मोम थे, जलाकर बुझा दिए जाते थे
जब से पत्थर के हुए है,ठुकराये जा रहें है ।-
जब खिड़की से बाहर आंखें मूंद कर तुम्हें देखती हूं
लगता है बिखरी जुल्फों को तुम संभालने आओगे
जब कभी गुजरती हूं उन भीड़भाड़ वाली गलियों से
लगता है तुम फिर वही कहीं अचानक दिख जाओगे
जब भी देती है होली इस शहर के दरवाजे पे दस्तक
लगता है तुम इक मुट्ठीभर गुलाल ले घर आ जाओगे
जब भी सोचती हूं इन हसीं लम्हों को जीने के बारे में
लगता है तुम ख्वाब़ से निकल हक़ीक़त हो जाओगे-
हमने समझा था जब हम बिखरेंगे तुम जोड़ जाओगे
हमको खबर कहां थी तुम ही हमें यूं छोड़ जाओगे-
किस-किस को रोकें अब दूर चले जाने से,
हमने खुद को भी कहां अपने पास रखा है-
प्रेम में..
प्रेम पत्र का समय पर ना पहुंच पाना
उतना कष्टदायक नहीं होता,
जितना शिकायत लिखकर पत्र को
नष्ट कर दिया जाना।-
किसी रोज जब ढलता दिन भीतर मेरे उतरता है
मेरे दिल में बैठा इश्क़ रश्क करते हुए जलता है-
जो बातें तुमसे कही जानी थी
तुम तक पहुंच ना पाने पर अब
भीतर कहीं दुबक कर रोती है
इक मुलाकात हमने तय की थी
जो पूरी ना हो सकी
अब मुलाकात इंतजार में
टकटकी लगाए रहती है
जो चुन लिया था तुमने मुझे
तुम्हें खो देने के डर से आंखें
अक्सर आधी जगी रहती है-