आलोक उनियाल  
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Freelance painter , Photographer & poet
Joined 5 July 2020


Freelance painter , Photographer & poet
Joined 5 July 2020
10 JUL 2021 AT 17:58

सौम्यता, संयम,सभ्यता से ...
नित निभाते तुम हो प्रीत
मुख - ललाट चारु से सुशोभित,
श्रेष्ठ नीति का अनुसरण हो करते,
कहलाते तुम जन-जन के सुनीत।

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वो मेरी कमीज में
यूँ बटन टाँकती थी,
जैसे फुरसत में
ख़्वाबों को बाँचती थी।

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30 APR 2021 AT 20:19

अनन्त काल से..
खुरदुरे धरातल पर तुम ,
बहती श्वेत धारा अविरल।
जन - जन में प्राण प्रवाहित करती
अधरों पर खिलते मधुर कमल।

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17 APR 2021 AT 16:06

फूलों को भी..
अब खंजर भाने लगे,
जब से लोग..
मोहब्बत में..
खुद को आजमाने लगे।

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15 APR 2021 AT 19:56

उखड़ती साँसे,
मौत का रेला..
क्या बोलें...
खेला होबे.. खेला होबे..

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10 APR 2021 AT 19:35

चिंताओं और चिताओं का ,
अज़ब ये दौर चल रहा है ...
आदमी है के...
सुबह शाम बस हाथ मल रहा है।

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21 JAN 2021 AT 15:39

कांटों की तरह
मुझे फूलों के साथ रहने दो ,
मैं संघर्ष में पला हूँ ,
मुझे उसूलों के साथ ही रहने दो ।

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16 JAN 2021 AT 22:39

रात की राख बिखर गई
दिल में,
जब दिन गुजरा अंगारों की
महफ़िल में ।

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15 JAN 2021 AT 16:46

सर्द हवाएँ और धूप भी
नम है ,
अब तो चले आओ ...
गुलाबों का मौसम है ।

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13 JAN 2021 AT 12:01

एक शाम जब उनका आना हुआ ,
लगा यूँ के जैसे...
बादल बरसे जमाना हुआ।

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