भ्रम और यथार्थ के इस खेल में..
छिन्न भिन्न ,डाँवाडोल चित्त मेरा..
रूह तलक दर्द है एहसास का..
मौन ही अब मर्ज है इस दर्द का..
आसक्त मन की व्यकुलता अब देह है...
देह से परे जानने की जिद भी है..
चेतना से परे भी स्वयं को...
स्वयं को परखने की आजमाइश है..
यादों का ज्वार उमड़ता पूर्णमासी में..
इंतज़ार है चाँद के, डूब जाने का..
एक मन, असंख्य वेदनाएं एहसास की..
मौन ही अब सकुनियत का रास्ता है...-
अब कभी आया तेरे दर फिर से..
तो एहसास के साथ वक़्त लेकर आऊंगा...
बैठकर तेरे साथ हज़ारो बाते गुनगुनाउंगा...
थाम कर तेरा हाथ सब कुछ भूल जाऊंगा...
तेरे कांधे पर रख सर अपना...
एहसासों के मौन में खो जाऊंगा...
इल्तिज़ा रहेगी कि इश्क़ कभी कम न हो मेरा..
हो गयी गर खता तू बता जी कैसे पाऊंगा...
बस तुमसे मिलकर फिर से वो ही एहसास..
तुम्हे हर पल महसूस करवाऊंगा...
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जब कोई नही रहेगा मेरे संग..
तेरी स्मृतियां शेष रहेगी मुझमे...
जब होगी भीतर विरानिया...
एहसासो के चंद सिर्फ तेरे होंगे...
मुझे डर नही हिज़्र की रात का...
जो पल तेरे मेरे थे , वो तो हरपल साथ रहंगे...
मेरे इश्क़ तुमसे इश्क़ है बेपनाह— % &-
वो इंतज़ार भी होगा बेहद सकूँन भरा..
जब तुम रास्ता ताकोगी आँखो में इश्क़ लिए...-
गुफ़्तगू करँगे शरद ऋतु की गुलाबी ठंड में...
गुलमोहर के पेड़ के नीचे...
तेरे मेरे इश्क़ के एहसासो की....-
इश्क़ आज भी ताज़ा है मेरे भीतर...
एहसासो की खाद और आसुओ की नमी बदस्तुर जारी है...-
तलाश है कुछ ऐसी ही जगह की...
जहाँ मौन ओर अपने इश्क़ को लेकर
इन वादियों में खो जाऊ...-
जिस्म बदलेगा मेरा , इश्क़ कायम उम्र भर रहेगा....
राख आएगी मेरे हिस्से, जोगी तेरे इश्क़ का बन जाऊंगा....
किनारे का नामो निशान ना होगा, साहिल तेरे इश्क़ का बन जाऊंगा...
छुअन वास्तविक न होगी उस पल,पर एहसास बनकर ताउम्र लिपट जाऊंगा..
तेरे इश्क़ में बावरा बनकर, इश्क़ के गीतों में नाम तेरा गुनगुनाउंगा...-