Ar- Rahman
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ये मेरी एक छोटी सी दुनिया ... read more
घंटों तकती रही वो
अपनी ही बनाई तस्वीर को
इश्क में डूबी मशहूर थी वो
ज़माने भर में रुसवा होकर
बंद कमरे की मलिका थी वो
खूब सजाती खूब रंग बिखेरती
सादे से कागज में जान डालती वो
न शौक था उसे हीरे मोती की
न ख्वाहिश थी उसे बड़े महलों की
खुश मिजाज़ थी
अपने सपनों में कैद थी वो
खूब सूरत तो नहीं था
पर खूब सीरत से भरपूर थी वो।।
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पहले सी अब वो बातें नहीं
पहले सी अब वो राहतें नहीं
अब तो है बेसुकूनी और बेबसी
सुबह से रात हो रही
शाम का कुछ पता नहीं
कुछ खालीपन है कुछ उलझने भी
क्या चल रहा है जिंदगी में कुछ पता नहीं
टेढ़े मढ़े रस्ते में ,सीधा चलने की कोशिश में
हर बार ही गिर रही
गिरफ्त हूं खुद के कश्मकश में
बेवजह की इस सजा से
न जाने कब रिहाई होगी
रोज़ाना मिलते थे जिस एक चेहरे से
वक्त गुज़र गया है काफी, उनसे मुलाक़ात हुई नहीं
बेवजह मिलते है जिनसे ,मुद्दत हो गई मिले उनसे
अब कौन कहां है उनकी कुछ खबर नहीं
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सादगी को पसंद कर
चली राह में
थाम कर हाथ उसका
जीवन बिताने
ज्यादा कुछ चाहा नहीं
चाहा बस खुशियां
मोह से दूर माया से परे
सारी समृद्धि को छोड़
चली एक सरल और सदा जीवन बसाने।।
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