Ak
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23
I live in moments
I write about moments
जब धूप धीरे-धीरे गर्म होती है
और पेड़ों से छनती हुई आंगन में पसरती है
तब कोने में पड़ा वो मिट्टी का मटका
रोज़ से थोड़ा ज़्यादा ख़ास हो जाता है।
तुम तार पर कपड़े डालते हुए बात नहीं करती,
बस वहीं तुम्हारी नाराज़गी का अंदाज़ा हो जाता है।
फिर तुम्हारे झुमकों से ज़रा मैं खेल लेता हूं,
और तुम गीले बालों से नाराज़गी की बूंदें झटकती हो।
हथेलियों के बीच अजवाइन रगड़ती हो
और उस महक में मेरा त्यौहार बस वहीं शुरू हो जाता है।
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