Aakash V Shivach   (Aakash V Shivach)
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Joined 13 May 2018


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15 OCT AT 15:52

हाँ नहीं चाहता, कुछ चीजों से ख़ुद का उभरना मैं।

तुम्हें वक्त आने पे पता चलेगा,
की इन ही आदतों से चाहता हूँ सुधरना मैं।



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13 OCT AT 15:00

ये वक्त नहीं है समझाने का।

तू आ पास बैठ,
ये वक्त है एक दूजे को समझने का।


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6 OCT AT 17:46

तकलीफ़ आज है कल नहीं होगी,
मैं ये सोच कर हंस लेता हूँ।
मेरी मुस्कान देखकर आस पास सबको ख़ुशी होगी,
मैं ये भी सोच कर हंस लेता हूँ।


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6 OCT AT 9:23

अब बात पूरी एक साथ नहीं कहीं जाती,
टुकड़ो में टूटे शब्दों से होती है।

जैसे वक्त नहीं मिलेगा अपने शब्द पूरे करने का।

या चाहते नहीं लोग समझने के लिए वक्त लेना,
सामने वाले के जज्बातों का।


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6 OCT AT 9:04

मैं बादलों से अपनी गुजारिश जाहिर करके, आज बारिश करवा दूँगा।
तुम काम के बहाने, घर के आँगन में ही रहना।



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5 OCT AT 19:48

उन्हें सब जुज़्बात बता चुका हूँ।
अगले कदमों की कहानी संग बना चुका हूँ।

पर शक करना, उनकी आदत में मशरूफ़ है शायद।
मैं अक्सर अधूरी रह जानी वाली बातें, भी पूरी बता चुका हूँ।





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5 OCT AT 19:41

हमे सीखना चाहिए, वो सीखने वाली हर चीज।
की हर अपने को ख़ुशी दे सकें, और दर्द ना आए हमारे बीच।



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27 SEP AT 19:45

खून लग जाता है अक्सर अपने हाथो में,
अपने ही सपनों का।

लगाना होता है जब मरहम,
बिखरते हुए सपनों के कारण, जख्म सह रहे अपनों का।

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27 SEP AT 15:51

कुछ लोग मांगते नहीं है इतना,
जितना उन्हें बिन मांगे मिला है।

कुछ लोग को मिलता नहीं है कुछ,
पर जुबान मीठी रखते है और दिल में खुदा है।

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27 SEP AT 15:47

कैसे शक ना करूँ अपनी ख़ुशी पर।
क्यूँकि वो तो सिर्फ़ पर्दा है।

थक कर बैठा है दुख उस पर्दे के पीछे।
झाँकती हुई उसकी आँखें,
कब हटा देंगी उसे किसको पता है।

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