Aakash Trivedi   (Aakash trivedi)
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इतना आसान भी नहीं है..
यह लिखने का सफर
साहब ..
बीते जख्मों को रोज उधेड़ना पड़ता है।
Joined 27 May 2019


इतना आसान भी नहीं है..
यह लिखने का सफर
साहब ..
बीते जख्मों को रोज उधेड़ना पड़ता है।
Joined 27 May 2019
21 JUL 2023 AT 18:41

अब थकान ही मुकम्मल करती है
नींदों को,
अगर जीवन रात होता तो जागते
जीवन भर।

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21 JUL 2023 AT 18:36

तुम धूप हो जुलाई की,
पहले गिरती हो बादल पर..
फिर शेष रही तो मुझ तक आती हो।
—Aakash trivedi

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19 AUG 2022 AT 16:08

न जानू मैं ईश्वरीय माया,नहीं जानता कोई भेद हूँ
अंत हो आरंभ हो समर्पण के कृष्ण तुम,
नास्तिक हृदय में भक्ति का अंकुरण हो..
अंततः सभी इष्ट का नवीनतम रूप हो।
मृत हो चैतन्य हो अमर हो आत्मा हो
न रूढ़ि न परंपरा ना कोई पंथ हो,जीवन परिवर्तन का सत्कार्मिक रूप हो।
कल्पना हो सत्य भी और आदि अनंत,सगुण,निर्गुण रूप हो
आकर्षण हो मोहन भी मुरली हो ध्वनि हो
पिता हो गुरु भी बालक हो और मित्र हो।
संपूर्ण जटिल ब्रह्मांड का सहजतम स्वरूप हो..
धरती,वायु,अग्नि,पृथ्वी,मैं और तुम कृष्ण हो कृष्ण हो।

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23 JUL 2022 AT 19:29

वह परिस्थिति जिसमें दुख के कार्यकारी कारण का अंत नहीं हो सकता
उसमें दुख के जनक से सामंजस्य या उसका अंत ही आवश्यक है।

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10 JUN 2022 AT 17:33

प्रोत्साहन एक बाहरी प्रक्रिया है जो हमें जाने अनजाने में उस मार्ग पर चलने को क्षणिक ही प्रेरित करती है जिसका लक्ष्य हम कभी तय करना ही नहीं चाहते।
अपने स्वभाव के प्रति सच्चा होना सत्य है जबकि बाहरी प्रोत्साहन कुछ ही समय में मिथ्या साबित होता है।
एक वाक्य में कहे तो,"बाहरी प्रोत्साहन हानिकारक है और अंतर की आवाज़ ही दीपकरूपी मानव का तेल।”

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7 JUN 2022 AT 21:09

पहले रुख़सत न होंगे कह कर सबसे रुख़सत कर दिया..
फिर बाद में उसी तर्ज़ पर उसने खुद को हमसे रुख़सत किया।

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6 JUN 2022 AT 23:16

बड़े बड़ाई ना करें,बड़े न बोले बोल।
रहिमन हीरा कब कहे,लाख टका मेरो मोल।।

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2 JUN 2022 AT 21:43

ऊष्मा या शीतलता तो केवल अवधि का परिणाम है,
परंतु सूरज कभी अपनी ज्वाला शांत नहीं करता।

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2 JUN 2022 AT 14:36

नज़र मिलते ही शुरू हुआ था वह किस्सा,
जिसे हम नज़र भर भी अब देखना नहीं चाहते।

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28 MAY 2022 AT 12:31

सहायता मित्र समझकर कर रहे थे
हम उनकी..
परंतु वह कुछ मूल्य देकर
स्वयं को हमसे छुड़ाने लगे।

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