Aakash Sharma   (अहसिन junior)
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◾विचारवादी
◾अधूरा इन्सान
Joined 24 March 2018


◾विचारवादी
◾अधूरा इन्सान
Joined 24 March 2018
20 JUN 2022 AT 12:31

कल्पनाओं से भरा व्यक्ति कभी ये नहीं जानता कि असल में उसे चाहिए क्या होता हैं ?
वो तो बस खुशियाँ चाहता हैं
पल भर की खुशियां हर पल में...

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20 JUN 2022 AT 11:49

प्रेम को कितनी ही बार लिखने की कोशिश की हैं, मग़र ठीक प्रेम लिखने से हमेशा रह जाता हूँ। कई बार पूरा प्रेम लिख लेता हूँ और आख़िरी वाक्य पर अटक जाता हूँ- हर बार! हर बार लगता हैं कि वह एक वाक्य रह गया हैं कहीं, किसी के इंतजार में किसी की वापसी की प्रतीक्षा में बाट जोहता -सा!
असल में मैंने सारा कुछ जो लिखा हैं ,वह प्रेम सरीखा लिखा हैं - ठीक प्रेम नहीं, क्योंकि ठीक प्रेम तो अभी भी कही -किसी चौखट पर खड़ा हैं ,किसी के इंतजार में .....

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14 DEC 2021 AT 16:38

तकिये पे तेरे वो जुल्फों के जाल पड़े हैं
चादर में तेरे जिस्म की खुश्बू
हाथों में महकता हैं तेरे चेहरे का एहसास
माथे पर तेरे ..मेरे होंठो की मुहर लगी हैं

तू इतना करीब हैं कि तुझे देखूँ तो कैसे ...
थोड़ी सी अलग हो तो तेरे चेहरे को देखूँ ।।

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24 NOV 2021 AT 23:13

वो आई ऐसे की
मेरे बेरंग सी जिन्दगी को आबाद कर गई
एक मुरझाया सा फूल था मैं
उसने मुझे छुआ
और..
मुझे खुश्बू से भरी बाग़ कर गई ।

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22 NOV 2021 AT 15:05

चलिए मान लेते हैं ...प्रेम में स्वयं के लिए प्रेम की अपेक्षाएं नहीं होनी चाहिए ।

पर क्या आप खुद को निरंतर कष्ट देकर दूसरों को सुख दे सकते हैं ?

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7 NOV 2021 AT 22:58

शायद हर गलतियों के लिए पश्चाताप मुमकिन ना हो।मगर आप कैसे उन पीड़ाओं से मुक्ति पा सकते हैं जिन्हें आप करना तो नहीं चाहते परन्तु आप अपने सुख की चेष्टा में उन्हें कर बैठते हैं ।
वह अनुभूति... जो संसार के समस्त पीड़ाओं के समान सा कष्ट आपका हृदय अनुभव कर रहा हो ।

क्या होता हैं कोई मार्ग इस समय पर स्वयं को सुखी रख पाने के लिए ?

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26 MAY 2021 AT 16:23

मैंने अपनी जिन्दगी के बहुत से सवाल वक़्त को दे रखें हैं।
इसलिए कभी कभी वक़्त से पहले उनके जवाब मेरे पास भी नहीं होते हैं ।

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24 DEC 2020 AT 22:27

प्यार... कभी मिला नहीं।
जो मिला... वो ठेहरा नहीं ।
रही जो साथ वो केवल तकलीफ़ थी ।

और सच कहूँ तो जिन्दगी यही हैं ।

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14 SEP 2020 AT 9:43

हाँ.. हिन्दी में लिखना ,पढ़ना अच्छा लगता हैं इसलिए नहीं कि बाकी भाषाएँ मुझें नहीं आती । बल्कि इसलिए क्योंकि ख़ुद को व्यक्त केवल इसी में कर पाता हूँ ।
जैसे एक माँ बच्चें को समझती हैं ना ठीक वैसे ही हिन्दी मेरे जज़्बातों को समझती हैं । तुम्हारे लिए भाषाएँ सवांद का आधार हो सकती हैं पर मेरे लिए तो हिन्दी मेरी आत्मा की आवाज हैं ।

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23 JUL 2020 AT 22:27

वक़्त के साथ परिवर्तन आते हैं जीवन में और विचारों में भी ।विचारधारा में परिवर्तन से जीवन शैली भी बदलती हैं ।कुछ ऐसे बदलाव आते हैं जो आप नही चाहते ,शायद खुश नहीं होंते उनसे । ये बात सच हैं कि आपकी महत्वता हर वक़्त एक जैसी एक इंसान के लिए नहीं रहती पर ये बात भी सच हैं कि इस बात को झूठलाने वाला एक इंसान ज़िन्दगी में जरूरी मिलता हैं और अगर तुमने उसे पा लिया तो खुशनसीब हो और अगर अभी तक नहीं पाया तो कोशिश करो कि तुम वो इंसान बन सको किसी की ज़िंदगी में...

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