चल किनारे ले चलूं, तू मेरी नाव में बैठ,
आंखें बंद कर, अपने गांव में बैठ,
तपना तो काम है तेरा 365 दिन का ,
आज आराम कर सुर्य तु छांव में बैठ ।।
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सुना है तुम विदेशी हमनवा लाए हो,
रोग गेहरा है , तुम सस्ती दवा लाए हो,
तुमसे लड़ने को आगे एक तूफां खड़ा है..
और तुम हाथों मे भर कर हवा लाए हो ।।
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Mujhe koi ilm nahi ye konsa sharab rkha hai,
Hamne teri kareebi ke liye ye Shaukh-e-nawab rkha hai,
Chahe kaanta hi kyu na lage mere paav par,
Tu kahe, to mai keh du ki gulaab rkha hai.-
इधर.......उधर......और , किधर देखूं
तू कहें जिधर मै उधर देखूं,
मुझे डर है मीरा हो जानें का...
मै जिधर देखूं बस गिरधर देखूं ।।-
तुम्हारे चेहरे पर ही लिखुं ,
या नीली आंखों पर लिख दूं ,
कुछ लिखूं नए हालातों पर
या पुरानी बातों पर लिख दूं
मेरे ज़हन में आया है कि मैं कुछ भूला-बिसरा काम करूं,
कलम उठाकर कागज पर.......... एक गीत तुम्हारे नाम करूं ।। ........
एक शेर का एसा मतला हो जिसे तुम्हारे खयालो से भर दूं,
एक नज़्म भी एसी लिखूं मै जिसे तुम्हारे सवालों से भर दूं ,
कुछ छंद भी एसे लिखें है , जो तुम्हें सुनाने बाकी है ,
कुछ पंक्तियां अभी भी है जिनमें , वो लम्हे सुहाने बाकी है।।
ये सारे कागज़ उठा कर मै , इनका ज़िक्र सरे-आम करू
कलम उठाकर कागज पर.......... एक गीत तुम्हारे नाम करूं ।
एक गीत तुम्हारे नाम करूं ।।-
कमरें की खिड़कियों से अब नजर नहीं आते ,
तुम शहर तो आते हो, पर अब घर नहीं आते .......-
ऐसी सूरत , ऐसी ही आंखें , मुख पर लाली हो तो एसी हो,
किसी मृग से चंचल नैन नक्श, आंखें काली हो तो ऐसी हो,
घन-घोर घनेरे केशो में एक लाल गुलाब भी होता है...
किसी अप्सरा के कानों में कोई बाली हो तो ऐसी हो।
के जिस दिन अलग हुए थे हम, वो दिन तो तुमको याद होगा,
जो सिर्फ तुम्हारा होके रह गया वो दिल भी तुमको याद होगा।
तुम अब-भी मेरे ख्यालो में उस दिन की रात के जैसी हो........
चलो छोड़ो ये सब पुरानी बातें तुम और बताओ कैसी हो ।।-
क्या अब भी तुम महज़ घुमने, बाज़ार तक जाया करती हो ,
क्या उस साफ हवा की खोज में उस मज़ार तक जाया करती हो..
क्या तुम्हारे खुले हुए इन बालो में कोई हवा का झोंका टकराता है...
अपने बिखरे हुए उन बालों में मेरी उंगलियों को पाया करती हो ।।
क्या अब भी तुमको आसमां मे वो रंग दिखाई देते है,
क्या अब भी तुम्हारे कानों में मेरे लफ़्ज़ सुनाई देते है,
क्या अब भी तुम उस पुल के नीचे बैठने जाया करती हो,
हर शाम अपनी अटारी पर कुछ वक़्त बिताया करती हो ।
उस दूर वाले बगान में क्या अब भी आम निकलते है,
क्या अब भी उन आमों को तुम चुराकर खाया करती हो ।।
लगता है जैसे अब भी तुम उस छोटी बच्ची के जैसी हो.....
छोड़ो ये सब पुरानी बातें तुम और बताओ कैसी हो ? ।।-
कुछ धुंधली सी , कुछ पुरी तरह काली,
कुछ रंगीन जवानी के रंगों सी, कुछ छोटी मगर सब पर भारी।
एक याद है जिसमें कच्चे आमों का स्वाद बयान कर रखा है
एक याद है जिसमें तुम भी हो जिसे अलग सजा कर रखा है।
एक याद है जिसमे तुम्हे पाने कि सारी मशक्कत दर्ज कर रखी है
एक याद मे कुछ पुराने लोग है जिन्हे भीतर छुपाकर रखा है ।
एक बिलकुल चेहरे पर बैठी है , एक कहीं दफ्न पड़ी चिल्लाती है,
ये मेरी यादें है, जो मेरे माथे पर अक्सर उभर कर आती है।।
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मैं उस ब्लैकबोर्ड की तरह बिल्कुल सपाट हूं तुम जब चाहो अपनी खयालों की चौल्क से मेरी सपाट पीठ पर कुछ शब्द उकेर सकती हो, वह शब्द जो तुम मुझे बताना नहीं चाहती पर मुझसे छुपा भी नहीं सकती ।
वह शब्द जिनके बारे में मेरा जानना जरूरी नहीं लेकिन तुम्हारे अंदर से बाहर आना जरूरी है।
अपनी पीठ पर लिखे उन शब्दों को मैं कभी पढ़ुंगा नहीं और ना ही पढ़ सकूंगा, लेकिन तुम से बाहर आने के बाद उन शब्दों को वापस तुम तक नहीं पहुंचने दूंगा।
और हां अगर ब्लैक बोर्ड पर जगह खत्म हो जाए और तुम और कुछ ना लिख सको तो पुराने शब्दों को मिटा देना ज्यादा पुरानी चीजें संभाल कर रखने का कोई फायदा नहीं है।
तुम डस्टर तो लाई नहीं होगी, अपने हाथों से इस चौल्क को मिटाओगी तो चौक से सफेद हुए इन हाथों को वापस अपने कपड़ों पर मत मल लेना वरना यह शब्द तुम्हारे साथ ही रह जाएंगे।
तुम एक काम करो उसे मेरे गालों पर मल दो, मैं समय निकालकर अपने गाल धो आऊंगा।
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