यहां पर बेगानों की बस्ती है, कौन है अपना इस संसार मे , लोग कहते है कि हम अपने हैं ...... लेकिन कहां कोई अपना लगता है ....... जन्म दाता के सिवा , शायद ये एक उफान था अपनों से दूर रहने का मुझे लगता है जुल्म की सलाखों के बीच कितने ही चहरे...
जब तक रिस्ता नया होता है , तब तक वह प्यारा होता है, जब रिश्ता पुराना हो जाता है, तब वह दूर होने के बहाने ढूंढता है , और कुछ भी बातें बनाता है जो होता ही नहीं है, नीचा दिखाने के लिए नए-नए हथकंडे अपनाता है , समाज में ऐसा रिश्ता भी किस काम आता है।
मेरी वजह से कोई खुश नहीं है क्या है मेरी जिंदगी अपनो के दुखों का कारण तो मै ही हूं आज मेरी वजह से मेरे अपनों के आंखों में जो खून है उसका कारण मैं ही हूं.... भगवान कदापि न करें मेरी इन हरकतों की वजह से मेरे मां-बाप मुझसे दूर नहीं हो जाएं....।
जो कवि हैं उन्हें कलम मिलना चाहिए,... मनुष्य को अपने जीवन में एक स्वरूप मिलना चाहिए,.. टूटना नहीं जीवन में कभी.... क्योंकि मंजिल इंसान नहीं बनाते हैं इंसानों के लिए.... कोई ना कोई मंजिल मिलेगी जरूर जीवन में... नौकरी का क्या है... एक ना एक दिन मिलेगी जरूर....।