चलो रात के हर लम्हे को थोड़ा और जीते हैं
हर सुबह की चाय थोड़ी और सुकून से पीते हैं
क्यों हम चैन के दो पल साथ बिताने में इतना हर्ज़ करते हैं
चलो ना जिंदगी को आज खुल के जरा खर्च करते हैं
रास्तों की मोड़ो पे थोड़ा और आराम फरमाते हैं
चलो किसी मुसाफिर से मिल उसे अपना बना आते हैं
क्यों न हम अपनी किताब में कुछ नए किस्से दर्ज करते हैं
चलो ना जिंदगी को आज खुल के जरा खर्च करते हैं-
जब सब कुछ कह लेने के बाद भी ,रह जाते हैं चंद शिकवे अनकहे
जब खामोश हो जाते हैं लफ्ज़ भी,तो खामोशी भी दर्द देती है बिन कहे
हां सच है कि कुछ शिकवे रह जाना दस्तूर है दुनिया का
पर तुम हर शिकवे को यूं खामोशी की चादर में छुपाओगे तो हम क्या कहें
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किसी अपने की तलाश में अनजाने रास्तों पे चल पड़ना
और उन रास्तों के अनजाने मोड़ पे अनजानों से मुलाकात होना
और उन मुलाकातों में अपनापन पा लेना
शायद यही एक सफर की खूबसूरती है-
यादों की अदला - बदली में कई किस्से अनसुने रह जाते हैं ।
तो क्यूं ना थोड़ा और जी लें फिर किसी अनसुने किस्से का हिस्सा बनने से पहले ।।-
जहां कभी हुआ करती थी बेबाक सोच की इक खूबसूरत रियासत
वहां अब दिल- ओ- दिमाग की चलने लगी थी अपनी ही सियासत-
जो भी तुम्हारे ख्याल हैं, हक़ीक़त से हमेशा बेहतर होंगे..
होने भी चाहिए.. गर ना हुए तो ज़िन्दगी का वजूद आखिर क्या रह जाएगा
पर सवाल ये है कि ज़िन्दगी क्या है
क्या हकीकत ज़िन्दगी है
पर हक़ीक़त ज़िन्दगी नही हो सकती..क्योंकि वो हमेशा रहेगी..
तुमसे पहले भी वो हक़ीक़त थी, तुम्हारे साथ भी
तुम्हारे बाद भी, वो हक़ीक़त ही है
लेकिन ज़िन्दगी इस हकीकत का हिस्सा ज़रूर हो सकती है
हां वो कैसे होगा ये तुम्हारे ऊपर है
लेकिन हकीकत को बदलने कि ताकत ज़िन्दगी में नहीं हैं
क्या ख्याल ज़िन्दगी है
पर ख्याल ज़िन्दगी कैसे हो सकते..क्योंकि वो तो ख्याल हैं..
वो कल किसी और के थे उसने उन्हें आम किया
अब आज वो तुम्हारे हैं और तुम भी उन्हें आम करोगे
लेकिन "कुछ" तुम्हारा भी शामिल होगा शायद उसमे
हां उनके दायरे तुम्हारे अंदर हैं.. उनका होना शायद तुमसे है
लेकिन तुम्हारे ख्याल तुमसे ज्यादा.. बहुत ज्यादा जीने का माद्दा रखते हैं..
तो फिर आखिर ज़िन्दगी क्या है..
शायद इन खयाल और हक़ीक़त का फर्क
क्योंकि जिस दिन तुम ख़यालों को हक़ीक़त में बदलने का जज्बा छोड़ दोगे
उसी दिन वो जो "कुछ" उन आम ख़यालों में तुम्हारा था
वो खत्म हो जाएगा
और तुम भी!!
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ठोकरें मिली हैं कई बार मुझको,
पर अब भी मुझमें उठ खड़े होने का जज़्बा बाकी है।
लाख झुका ले तकदीर मुझको,
पर अब भी उससे लडने को कुछ सांसे अभी बाकी है।
वो गुरूर नहीं मेरा जुनून है जो दिखता तुझको,
सब्र कर ऐ जिंदगी, अभी तुझको मेरा आखिरी सलाम बाकी है ।।
कई इम्तेहानों में परखा है तूने मुझको
तू ही बता दे कितनी कसौटियां और बाकी हैं।
डाल दे चाहे बीच मझधार में मुझको
मुश्किलों की पतवार बनाने का हुनर मुझमें अभी बाकी है।
वो गुरूर नहीं मेरा जुनून है जो दिखता तुझको,
सब्र कर ऐ जिंदगी, अभी तुझको मेरा आखिरी सलाम बाकी है ।।
डर नहीं है सपनों के टूटने का मुझको,
खुली आंखों से देख उन्हें पाने की भूख अभी बाकी है।
क्या हो गया जो ज़मी पे धक्के मिले हज़ार मुझको
नहीं पता तुझे शायद अभी मेरे हौसलों की उड़ान बाकी है।
वो गुरूर नहीं मेरा जुनून है जो दिखता तुझको,
सब्र कर ऐ जिंदगी, अभी तुझको मेरा आखिरी सलाम बाकी है ।।
इतना ना आज़मा ऐ जिंदगी मुझको,
मेरे हौसलों में थोड़ी आग अभी बाकी है।
इजाज़त है जा मुझसे रूठने की तुझको
क्योंकी तुझपे मुस्कुराने की मेरी आदत अब भी बाकी है ।
वो गुरूर नहीं मेरा जुनून है जो दिखता तुझको,
सब्र कर ऐ जिंदगी, अभी तुझको मेरा आखिरी सलाम बाकी है ।।
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कभी फुर्सत में बैठो तो सोचना ज़रूर
कि आखिर ज़िंदगी में क्या कमी है
कभी रगबत हो तो तलाशना ज़रूर
कि आखिर आंखों में क्यों नमी है
कभी हसरत हो ठहर के देखना ज़रूर
कि आखिर भीड़ में भी क्यों सबकी नज़रें थमी हैं
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समय है फिर से जीवन के अथाह समुद्र का मंथन करने का
समय है फिर अमृत कलश से जीवन का अभिनंदन करने का-
कल में गुम हो जाने का इरादा तो नहीं था
सुकून है पर इतना कि बोझ कोई झूठा वादा तो नहीं था-