मुसलसल गुज़रती ये रात इश्क़ है,
तुम्हें छोड़ कर, तुम्हारी हर बात इश्क़ है
ये अँधेरे की मधहोषियाँ,
ये चाँद का बादलों के पीछे से बार-बार झाँकना इश्क़ है
गुज़रते वक़्त में,
बेवक़्त तुम्हारी ये याद इश्क़ है,
हर पल जो गुज़र जाता है,
थम गयी ये रात इश्क़ है
नींद से इनकार, मगर
ख्वाबों में तुम्हारा इंतज़ार इश्क़ है
चारों तरफ की ये ख़ामोशी, मगर
कानों में गूँजती बस तुम्हारी ही आवाज़ इश्क़ है
लफ़्ज़ों से इनकार, मगर
नज़रों से हुआ ये इकरार इश्क़ है...
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