Aakanksha Dua   (Akii)
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Alive.
Joined 2 August 2017


Alive.
Joined 2 August 2017
19 OCT 2021 AT 23:39

Sea, calm as it could be,
No ripples, no waves

Bubbling sulphur,
The Trench giggled.

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14 OCT 2021 AT 18:38

कुछ कहने की हिम्मत नही है,
कुछ सुन ने का मन नही है शायद
ख़ामोश हूँ, ख़ामोशी पसन्द है अब शायद...

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13 AUG 2021 AT 23:15

ख़ुद में ख़ुद से खोए थे कभी,
ख़ुद में ख़ुद को पा लिया शायद,

लफ़्ज़ों से ख़ुद को तराश रहे थे कभी,
दुनिया ने हमें तराश दिया शायद,

शब्दों का खेल असान लगता था कभी,
उस स्याही को अब खो दिया शायद,

हर ज़ख्म महसूस होता था कभी,
हर घाव को नज़रंदाज़ करना सीख लिया शायद।

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29 MAR 2021 AT 17:33

कुछ आदतें बदलनी है,
मुझे, अपनी चाहतें बदलनी है,

ये खेल मेरे बस का नही,
लोगों की लिखी किताबें पढ़नी है,

दिमाग से निकला शेर नही,
दिल से निकली एक पंक्ति पढ़नी है,

शब्दों के जाल नही,
हकीकत बताए,
वो किताबें पढ़नी है।

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14 DEC 2020 AT 23:25

हर्फ़ तो थे शायद, लफ़्ज़ों कि कमी रही होगी
कहने को बहुत कुछ रहा होगा,
शायद वक़्त की कमी रही होगी...

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6 DEC 2020 AT 17:11

महज़ तस्वीरों में मुस्कुराए,
तो क्या मुस्कुराए जनाब,
महज़ लफ़्ज़ों से इश्क़ लड़ाए,
तो क्या ख़ाक इश्क़ लड़ाए जनाब,

सुना है, दो जाम लगाए,
और नशे में डूब गए जनाब,
सुना है, एक आँसू नहीं टपका,
और हमें भूल गए जनाब...

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9 OCT 2020 AT 3:03

Hey!!

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31 JUL 2020 AT 5:37

Tik-tok, the clock works,
Round and round,
It's back, where it all began,

Exactly the same,
Yet so different.

It's me again, and you.
You, different, this time?

Ha-ha, time played.

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18 MAY 2020 AT 23:59

शरद में उजड़े वृक्ष के जैसे
नीरस, बिखरे पत्र हों जैसे

डोर ही जैसे उलझी हो
खुद में खुद से लिपटी हो

शाँत अमावस रात के जैसे
सर्द रात में चाँद के जैसे

हर पँक्ति के भाव के जैसे
सिमटी लेकिन अलग है कैसे

प्रातह: निकले सूरज सी
नज़दीक, दहकती शीला सी

इश्क़, मोहब्बत, प्यार के जैसे
लफ़्फ़ाज़ी उस ज्ञान के जैसे

अर्थ-हीन एक स्वप्न के जैसे
मक्कार इस विश्व के जैसे

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19 APR 2020 AT 12:37

मुसलसल गुज़रती ये रात इश्क़ है,
तुम्हें छोड़ कर, तुम्हारी हर बात इश्क़ है

ये अँधेरे की मधहोषियाँ,
ये चाँद का बादलों के पीछे से बार-बार झाँकना इश्क़ है

गुज़रते वक़्त में,
बेवक़्त तुम्हारी ये याद इश्क़ है,

हर पल जो गुज़र जाता है,
थम गयी ये रात इश्क़ है

नींद से इनकार, मगर
ख्वाबों में तुम्हारा इंतज़ार इश्क़ है

चारों तरफ की ये ख़ामोशी, मगर
कानों में गूँजती बस तुम्हारी ही आवाज़ इश्क़ है

लफ़्ज़ों से इनकार, मगर
नज़रों से हुआ ये इकरार इश्क़ है...

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