दुनिया से छुपाते छुपाते,
खुद से भी छुपाने लगी हूँ,
कहानियाँ अब शायद,
बस खामोशियों को सुनाने लगी हूँ,
लफ़्ज़ों को अपने,
अब अधूरा सा पाती हूँ,
क्या गिला करूँ किसी से,
मैं खुद को भी कहाँ समझ पाती हूँ।-
Sea, calm as it could be,
No ripples, no waves
Bubbling sulphur,
The Trench giggled.-
कुछ कहने की हिम्मत नही है,
कुछ सुन ने का मन नही है शायद
ख़ामोश हूँ, ख़ामोशी पसन्द है अब शायद...-
ख़ुद में ख़ुद से खोए थे कभी,
ख़ुद में ख़ुद को पा लिया शायद,
लफ़्ज़ों से ख़ुद को तराश रहे थे कभी,
दुनिया ने हमें तराश दिया शायद,
शब्दों का खेल असान लगता था कभी,
उस स्याही को अब खो दिया शायद,
हर ज़ख्म महसूस होता था कभी,
हर घाव को नज़रंदाज़ करना सीख लिया शायद।-
कुछ आदतें बदलनी है,
मुझे, अपनी चाहतें बदलनी है,
ये खेल मेरे बस का नही,
लोगों की लिखी किताबें पढ़नी है,
दिमाग से निकला शेर नही,
दिल से निकली एक पंक्ति पढ़नी है,
शब्दों के जाल नही,
हकीकत बताए,
वो किताबें पढ़नी है।-
हर्फ़ तो थे शायद, लफ़्ज़ों कि कमी रही होगी
कहने को बहुत कुछ रहा होगा,
शायद वक़्त की कमी रही होगी...-
महज़ तस्वीरों में मुस्कुराए,
तो क्या मुस्कुराए जनाब,
महज़ लफ़्ज़ों से इश्क़ लड़ाए,
तो क्या ख़ाक इश्क़ लड़ाए जनाब,
सुना है, दो जाम लगाए,
और नशे में डूब गए जनाब,
सुना है, एक आँसू नहीं टपका,
और हमें भूल गए जनाब...-
Tik-tok, the clock works,
Round and round,
It's back, where it all began,
Exactly the same,
Yet so different.
It's me again, and you.
You, different, this time?
Ha-ha, time played.-
शरद में उजड़े वृक्ष के जैसे
नीरस, बिखरे पत्र हों जैसे
डोर ही जैसे उलझी हो
खुद में खुद से लिपटी हो
शाँत अमावस रात के जैसे
सर्द रात में चाँद के जैसे
हर पँक्ति के भाव के जैसे
सिमटी लेकिन अलग है कैसे
प्रातह: निकले सूरज सी
नज़दीक, दहकती शीला सी
इश्क़, मोहब्बत, प्यार के जैसे
लफ़्फ़ाज़ी उस ज्ञान के जैसे
अर्थ-हीन एक स्वप्न के जैसे
मक्कार इस विश्व के जैसे-