Aakaashh Sharma   (~राहिल~)
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Joined 9 October 2017


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8 FEB 2019 AT 11:10

उनके लबों की लाली, रुखसार तक आ गई
बात मोहब्बत की जब, इज़हार तक आ गई

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28 DEC 2018 AT 14:31

नाराज़गी की अब हद हो गई
दूरियाँ भी देखो बेहद हो गई

आओ मिटा डाले मिलके हम
बीच हमारे जो सरहद हो गई

गले मिल जाना ही हल है इक
नाकाम सब जद्दोजहद हो गई

फीकी थी ज़िन्दगी उनके बिन
वो लबों से लगी, शहद हो गई

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22 NOV 2018 AT 10:26

कैसे बतलाऊँ, हुआ क्या-क्या, तुम्हारे जाने के बाद
फूलों ने भी महकना छोड़ दिया,तुम्हारे जाने के बाद

ये जो दिख रहा हूँ मैं, ऐसा तो कतई नहीं था मैं
मुझे तो ऐसा वक़्त ने बनाया, तुम्हारे जाने के बाद

वो रात चांदनी, आगोश तुम्हारा और मदहोश मैं
फिर ना किसी ने ऐसे सुलाया, तुम्हारे जाने के बाद

ज़ख्मों को मेरे ना हकीम मिला न ही कोई मरहम
हर दर्द अपना महफ़िल में गाया तुम्हारे जाने के बाद

अब ये हवाएँ भी न जाने क्यूँ मचलती नहीं "राहिल"
या मैं ही कुछ सयाना हो गया, तुम्हारे जाने के बाद

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21 MAR 2018 AT 14:39

"कविता"

कविता को कवि की करामात कहूँगा।
कमाल की कोई कल्पना कहूँगा।
कारीगरी कहूँगा कलम की।

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6 JAN 2021 AT 0:12

मैं एहसासों से खेलूँ, हिदायत नहीं हैं
तोड़ने की हमारे यहां रिवायत नहीं है

भला कैसे हो जाए अब नाराज़ तुमसे
हमें मोहब्बत नहीं है शिकायत नहीं है

किसी करीबी ने बुना था जाल वरना
वज़ीरों से मरना मेरी फितरत नहीं है

नब्ज़ ना टटोलो यारों,अलविदा कहदो
मुझमें अब बाकी कोई हरकत नहीं है

खैर छोड़ो ये मसला अब जाने भी दो
"राहिल" को रुकने की आदत नहीं है

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23 NOV 2020 AT 16:19

भीतर में सबके मिलावट मिलेगी
चेहरों पर नकली सजावट मिलेगी

जो भी सुनोगे सब सच सा लगेगा
पर लहज़े में उनके बनावट मिलेगी

मत सोचना नजर लगी ये किसकी
सोची समझी एक रुकावट मिलेगी

बेजान से बिखरे पड़े यहां रिश्ते
इश्क़ के कंधो में थकावट मिलेगी

हर झूठ दिख जाए मुमकिन नहीं
बस होशियार रहना आहट मिलेगी

दस्तख़त जहां भी 'राहिल' के होंगे
यकीनन मेरी ही लिखावट मिलेगी

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25 SEP 2020 AT 1:37

रै धोती आळे! उठा ट्रैक्टर, कर चढ़ाई दिल्ली पै
इसी मार कसुत्ती चोट, ना जावै भुलाई दिल्ली पै

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16 SEP 2020 AT 0:07

उन्हें कविताएँ सुनना कतई पसंद नहीं था।
सो हमनें कविताओं में उनको ही लिख दिया।
भला किसको पसंद नहीं खुद की तारीफ सुनना।
कुछ इस तरह हमें वो और उन्हें कविताएँ भाने लगी।


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18 AUG 2020 AT 2:04

ये अदाकारी थी हमारी, जो उन्हें एहसास होने नहीं दिया
वरना झूठ बोलने का सलीका तो उन्हें था ही नहीं

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25 JUN 2020 AT 18:51

कितने बेगै़रत¹ होते है, ये मतलबी लोग
है अपनों के ही भेस में, सब अजनबी लोग

नफरत के चूल्हे पर रोटियाँ सेक-सेक कर
मेरा तो मुल्क खा गए, कुछ मज़हबी लोग



1.बेशर्म

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