धरती की पुकार।
जीवन मे आजतक,
तुमने नहीं किया कोई उपकार।
पेड़ काटकर धरती के,
कर रहे हो जीवन तुम बेकार।
अपनी इच्छाओं के चलते,
मत भरो अपनी माटी से हुंकार।
नहीं समझे जल्द-ही,
तो धरती देगी तुम्हे सुधार।
गला घोंटा था, धरती का तुमने,
जभी मिला है, यह कोरोना का वार।
करता हूँ, मैं विनती सबसे,
अब और न करो अत्याचार।
जर्जर होती इस धरती को,
दे दो फिरसे तुम आकार।
पेड़ लगाकर बहुत से,
कर दो तुम पृथ्वी को साकार।
नहीं चाहिए और कुछ बस,
यही है धरती माँ की पुकार।
नहीं चाहिए और कुछ,
बस यही है धरती की पुकार....
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