आकाश कुशवाहा   (Akash Kushwaha)
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Dedicated and passionate writer ✒️✨
Joined 28 February 2020


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सही कहा है, किसी ने,
कि बदलाव संसार का नियम है।
जभी तो यहाँ लोगों के मिज़ाज,
पलभर में बदल जातें हैं....

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इंसान की फितरत है,
पल भर में बदल जाना।
एक नए धोखे को देकर,
नए लोगो को अजमाना।
बदलता कहाँ है,
अपने आप को वो मानव,
जिसके भीतर है आ जाता,
अहंकार का परवाना।।

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ये सावन की बारिश,
ये मौसम सुहाना।
ये बारिश की बूंदे,
यही है खजाना।।

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जैसे दिन की सभी विषमताएं,
खत्म करता है सूर्यास्त।
वैसे ही सामाजिक दूरी,
कर सकती है कोरोना को परास्त।
बस सभी से मेरी,
है यही दरख्वास्त।
की कोरोना है अभी भी मौजूद,
इसलिए पहनकर रखो सभी मास्क।।

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कि इंसान शंभल जाएगा।
कोशिशों के इंतेहा में,
सकारात्मक परिणाम अवश्य आएगा।
डरिए मत, खुश रहिए,
क्योंकि यह वक्त है,
आखिर गुजर जाएगा........

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धरती की पुकार।

जीवन मे आजतक,
तुमने नहीं किया कोई उपकार।
पेड़ काटकर धरती के,
कर रहे हो जीवन तुम बेकार।
अपनी इच्छाओं के चलते,
मत भरो अपनी माटी से हुंकार।
नहीं समझे जल्द-ही,
तो धरती देगी तुम्हे सुधार।
गला घोंटा था, धरती का तुमने,
जभी मिला है, यह कोरोना का वार।
करता हूँ, मैं विनती सबसे,
अब और न करो अत्याचार।
जर्जर होती इस धरती को,
दे दो फिरसे तुम आकार।
पेड़ लगाकर बहुत से,
कर दो तुम पृथ्वी को साकार।
नहीं चाहिए और कुछ बस,
यही है धरती माँ की पुकार।
नहीं चाहिए और कुछ,
बस यही है धरती की पुकार....

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हाथो को धोकर,
खुद को बीमारियों से बचाना।
मुँह पर हमेशा,
मास्क है लगाना।
समय आने पर,
वैक्सीन भी लगवाना।
क्योंकि हमें जल्द ही,
इस कोरोना को,
भारत देश से है भगाना।।

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हर दिन लॉकडाउन का,
पड़ रहा है भारी।
योद्धा कर रहें हैं, कोरोना से,
जीतने की तैयारी ।
न जाने कब,
खत्म होगी यह महामारी.......

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चाँद की रोशनी से,
उजियारी है काली रात।
बिन चाँद रोशनी के,
कहाँ बनती है कोई बात।
हर महीने एक दिन,
न जाने कहाँ है छुप जाता,
बस यही है इसका आघात।।

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हर दिन आपको चौबीस घंटे का ही समय मिलता है। यह आपके ऊपर है, आप इसे कम समझे या बहुत ज्यादा।

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