आकांक्षा खरे   (आकांक्षा खरे)
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जाने कितनी परते है मेरे किरदार में,
हर रोज खुद को अजनबी सी लगती हूँ.
Joined 21 April 2018


जाने कितनी परते है मेरे किरदार में,
हर रोज खुद को अजनबी सी लगती हूँ.
Joined 21 April 2018

लिखा था नाम तेरा ,
तेरी प्यारी सी हँसी,
दर्द भूल जाती थी मै,
छुपा के सारे आंसू गम में भी,
खिलखिलाती थी मै

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एक गुजरी शाम बयां करती है,
किस्से पुराने भी कुछ काम के थे,
जो मैं हूँ ,वो नही, या हूँ?
मै क्या थी वो सवाल करते है।
इस राह की कोई मंजिल भी है,
या है आकांक्षा,
जो पूरी नही हुई ख्वाहिश,
वो मलाल करती है।
मैंने ज़िंदगी से क्यों दाव खेला,
मेरी परछाई यही मुझसे सवाल करती है।
आकांक्षा खरे

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मेरा खो कर तुमसे मिलना,
इत्तेफाक था या कुछ और,
मेरा तुमसे मिलकर तुममे खो जाना,
किस्मत की यकीनन कितनी खूबसूरत चाल थी।

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मै सारे रिश्ते खुशी से निभा लुंगी,
बस तुम उम्र भर मेरा सम्मान करना।

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श्याम रंग में मैं रंग जाऊँ,
ऐसी जोडूं प्रीत,
हर क्षण कान्हा नाम हो,
गोविंद मिले मनमीत।

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अल्फाज़ो की कुदरत का गुलजार बाकि है,
न छुओ इनको अभी इकरार बाकि है।
कैद आंखों में है जो अक्स उनका,
झुक गयी, अभी दीदार बाकी है

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गम-ए-मंजर दिखा के यूँ मुस्कुराया न करो,
याद करके फिर मुझको दिल को जलाया न करो,
मै तो पानी सी बह चली बेसब्र, बेबस,
तुम हो गुलशन, यूँ मुरझाया न करो।

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मेरे सवालो कि गम्भीरता भी,
वो हँस कर टाल देती हैं।
वो मेरी किस्मत है,
आँखों में आँसू भी देती है,
रोने पर रुमाल भी देती है।

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फ़ना-ए-दिल भी हो पाक मोहोब्बत के नाम,
सकलें देख के फिर तौहीन-ए-वफ़ा क्या करना।

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सतयुग का रावण था, तो पुतला जला दिया।
कलयुग का होता तो ,जमानत पर घर पर होता।।

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