मुहब्बत कोई सौदा नहीं था मेरे लिए दिल चीरकर रख दिया था
एक गुलाब दे उसके निकाह के लिए उसे रुखसत कर दिया था-
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POETRY:- ||HAAL-E-DIL ||
| ADITYA PRAKASH|
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वो ऑंखों के इशारों से मुझे बेज़ार कर देता है
बाहों के घेरों से ही मुझे आफ़ताब कर देता है।।-
मुहब्बत किसी और से मेंहदी किसी और के नाम की
क्या हुआ जो लकीरें नहीं सांसें लेती तेरे ही नाम की-
सीधे सीधे रह रह कर सब उल्लू सीधा कर गए
सब अपना अपना देख रहे हम सीधे ही रह गए
छोड़ आए हैं सीधापन अब बहुत हो गई सिधाई
जिसका जैसा बर्ताव उसको वैसी मिले भलाई-
ना जाने किस-किस से छिपकर तुझसे मिलने आए हैं,
ऐसे ही मुहब्बत-ए-सुकूॅंन देना जान हथेली पे लाए हैं।-
कोरे कागज़ सा इंसान भेजा था ख़ालिक़ ने धरती पे,
लिख लिख कर कुरेद दिया जज़्बातों को कागज़ पे।-
घर के साथ दिल भी छोड़ कर आए हैं
चाभी किसी और के नाम कर आए हैं
और सूनी पड़ी हैं दीवारें वहां की अब
घर को छोड़ कमाने जो बाहर आए हैं-
दीवारों से बने घर में दिल कहां रहते
मुहब्बत करने वाले गलियों में फिरते
चाभी तो ख़ुदा के पास छोड़ आए सब
यहां तो सब किराए के मकान में रहते-
उसकी बक़ा की ख़ातिर ख़ुद को क़ज़ा कर आए हैं।
बिना ज़ुर्म के ही ख़ुद को मुल्जिम क़ुबूल कर आए हैं।-