बनती बिगड़ती टूटती जुड़ती रिश्तो की तिलिस्म में
बुन रहा एक ख़्वाब आने वाले कल का जिसमे
कोई अल्फ़ाज़ों में छिपी मेरी ख़्वाहिश समझ सके।
सर्द गुमनाम सहर में वो पहली धूप की थपकी से
जागते वक़्त चारदीवारी का सुनापन न हो।-
लब- ए - इश्क ने पूछा कितना प्यार करते हो मुझसे
मेने कह दिया समंदर से उसकी गहराई ना पूछा करो।-
रूंधे गले में अल्फाज़ अटके से क्यों है
सुनहरी धूप घटाओं में खोई से क्यों है
मेरी खुद की खुशियां पराई सी क्यों है
मुझे समझने वाला गुमशुदा सा क्यों है
मुस्कुराहट सिसकियों में तब्दील क्यों है
फौ फटने को है फिर ये अंधेरा क्यों है?-
वो अक्स देखकर रूह का अंदाज़ करना चाहता है
पागल है ! एक लहर से समंदर का अंदाज़ चाहता है?
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रोशनदान से झांकती सुनहरी धूप की चमक में
सब कुछ तो धुंधला है, मेरा अतीत मेरा भविष्य
मंजिल और मेरे बीच का ये फासला क्या काम था
जो मेरा कारवां एक नए मोड़ पर ठहर सा गया है
आज फिर वही द्वंद हैं मेरे दिल और दिमाग में।
खुद को आईने में देखकर ये सफ़र का आगाज़ किया था
फिर क्यों आज मेरा आईना मुझे कुछ और दिखा रहा?
अब अपने वजूद की लड़ाई फिर से लड़नी होगी मगर
खुद को जीतने के लिए खुद से लड़ना कैसा होता होगा?
लड़ना तो फिर भी ठीक है मगर खुद से हारना कैसा होगा?
काश ये रोशनदान से आती धूप मेरे अंतर्मन को छू पाती।-
अब्शार सा बहता था एक दौर में
ना जाने वो रेत सा क्यों है।
नूर बरसता था जिन द्रख्तो से
ना जाने वो बेजान सा क्यों है।
धूप गिरती थी जिस आंगन में
परिंदो का आशियाना क्यों हैं।
अपने माझी से रिश्ता तोड़ लिया
फिर यादों का ये बसेरा क्यों है।-
कभी रफ्ता रफ्ता बढ़ता रहा
कभी ठहर गया कारवां मेरा।
किश्तों में बनती बिगड़ती रही
कहनी ज़िंदगी की मेरी।-
Some people want you in their life, but some needs you. Desire and demand are the only two things that describes your social influence. Actually your influence is directly proportional to the time you spend for others. Apart from this everything else is just a bubble on hot plate.
Transient!-
शाम शुरू हुई है,
अभी अभी वो शहर रोशनी में नहाया है,
अभी अभी वो रात चांदनी आई है,
जरा देखो तो सही कैसा समा है,
ओर तुम जाने की बात कर रहे ।
रुको थोड़ा जी भर देख लू,
यूं ये चांद रोज रोज कहा आता है
यूं फुर्सत वाली शाम कहा आती है।
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