लफ़्ज़ तलाशूंगी तुक बिठाऊंगी शेरों में सजाकर भी मैं हार जाऊंगी
वो आकर इक दफ़ा सिर्फ़ 'आभा' बोलेगा और ला-जवाब कर देगा !-
मन्नतें आरज़ू हैं ख़्वाहिशें सब इक तरफ़, आज तो मेरी रूह भी मुस्कुराई है
सज़दे भी न रहे अब ख़ुदा से करने को आज उसने मेरे लिए चाय जो बनाई है!-
दोहराए जाएं ग़र शख़्सियत में भी सौरभ हो,मुझे रश्क़ बहुत है मेरे महबूब के हमनामों से !
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ख़ुशनसीबी की इंतिहा तो मेरे शेरों की है, हर मर्तबा इन्हें वो अपनी आवाज़ में सुनाता है !
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इतराती हैं अब नब्ज़ें मेरी, मेरे हर मर्ज़ का तू हक़ीम है
ख़ौफ खाते हैं मयख़ाने भी, जो तू नशों में मेरा अफ़ीम है!-
तमाशबीन है ज़माना ये नसीहतें हज़ार देगा
तुझे मेरे काजल का वास्ता इस बार आए तो साथ ले चल!-
अपनी तमाम मशग़ूल सहरों से ज़रा वक्त तुम निकालो
कि शाम से बिखरी हैं ये,लो अब मेरी ज़ुल्फ़ें सम्भालो !-
उनकी आग़ोश में गुज़र रही है ये उम्र हर रोज़
हम फ़क़त शेर भी न लिखते तो क्या ही करते!-
हर घर मन पाएं खुशियां, वो अपनी तरजीहें बाद में रखता है
समंदर पार सरहदों पर, वो इन त्यौहारों से बड़ी दूर रहता है !-
ख़ुदा जाने तकदीर मेरी, मेरे किन किरदारों का वो सवाब है
तर्ज़-ए-जुनून है मेरा, वो मुकम्मल हुआ मेरा इक ख़्वाब है !-