उठ रही तरकीबें अपनी पहचान बनाने की
खुद को खुद से बेहतर इंसान बनाने की
ज़रा सी दरारें क्या आयी घरों की दीवारों पर
शाजिशें होने लगी आसमान बनाने की
और अभी तो देख रहे थे तमाशा हाथ पे हाथ धरे
अब तैयारी है इस जंग को घमासान बनाने की
ज़रा सा खरोंच क्या अाई बह चले जलजले लहू के
क्या यही कीमत है मजहबी ईमान बनाने की
भेज रहें है संदेशे सभी कबूतरों के हाथ
पर कोशिशें है अमन ए कब्रिस्तान बनाने की
सहम उठेंगे जब धधक चलेगी इनकी कुर्सी पे आग
अभी तो तर रहे दरिया बेबस को शैतान बनाने की
कुछ सरफिरे से लोग हैं यहां हमारी तरह भी
जो तौर सिखाते है बेहतर आवाम बनाने की
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