रुकता नही मुसाफ़िर जब तक मंज़िल मिल न जाए.!
चाहे बुरा हो या अच्छा रास्ते के हर पल को जीता है
कभी-कभी ठेहर जरूर जाता ,
मगर उन्ही यादों को समेट कर फिर चल देता है।
रुकता नही मुसाफ़िर जब तक मंजिल न मिल जाता..!
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...story
.......Wizardy loverr..
{Not a writer but write to expr... read more
*.ये होली भी सुनी है तुम बिन ।
ये सतरंगी रंग भी फ़िके पड़ रहे हैं तुम बिन ।
पर कही ऐसा ना हो किसी और के हाथों का रंग चढ़ जाए मुझे।
कही ऐसा न हो किसी और के भांग में झूमने लगूँ मैं।
कही ऐसा न हो किसी और के रंग में रंग जाऊ मैं ।
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*खुशियों का है ये त्योहार ।पर ,
खुशियां मुँह से ज़ाहिर नही के सकतें ।
रंगों का है त्योहार ! पर ,
रंग हाथ से लगा नही सकते!
क्योंकि कोरोना ने इन्हें बंदी बना लिया है।-
स्वतंत्रता की कीमत
(हमारी स्वतंत्रता के लिए एक सैनिक अपने परिवार से दूर रह कर देता है ! या फिर यूँ कहें एक परिवार आपने अंश से दूर रह कर .)
*.परिंदये घर से निकले हैं,
देखो कब घर वापस आएंगे ।
नादान हैं परिंदये कहीं गुम न हो जाए,
किसी जासूस की मीठी मीठी बातों में आ न जाए ।
.*अब तो कितने साल बीत जाएंगे उनसे मिलने को ,
क्या हाल होगा हमारा, गर वो लौट के न आए तो।
जाते हो दूर पर भूलना मत की तुम्हारा कोई परिवार भी है ,
सरहद पे जाके हो मत जाना परदेशी !
भूलना मत इन्हें क्योंकि,
इस परिवार से भी तुम्हारा वजूद है ये तुम्हरे लिए कोई दीवार नही हैं ।
*. अगर मौका मिले , तो अपने छोटे घोंसले के तरफ
भी पंख फैला देना ।
चंद पल के लिए ही सही ,साल में एक बार ही अपनी ख़ैरियत का खत अपने परिवार को भी बता देना ।
*.यूँ आसान नही जो दे सके कीमत स्वतंत्रता की।
एक सैनिक के पीछे होता है कठोरता ,साहस और बलिदान पूरे कुटुम्ब की..बलिदान पूरे कुटुम्ब की..!
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*.हम तो दुर खड़े थे ये सोच कर
की शायद दूर से अकेले खड़े नज़र आ जाए उसे,
पर नज़रें पहुँची ही नही उसकी मुझ तक ।
कम्बख़त भीड़ से दुर जो खड़े हुए थे.।
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एक भीड़ में ।
सबके बीच बैठे तो थे ,
पर कहि दूर खोए थे हम।
नहीं.! ये किसी टूटे प्यार की यादें न थीं।
ये खालीपन था,एक अकेलापन था।
शायद ना हम उस भीड़ को अपना सके और ना उस भीड़ ने हमे।
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*.हम तो ये सोच कर सोए थे कल किसी न किसी को अपना प्यार मिलेगा।
पर किसे पता था कल भारत का काला इतिहास बनेगा।-
....जयद्रथ ने महादेव का वरदान पाया है!
*.लौट आओ वापस पुत्र,
धर्मराज ने पुकार लगाया है !
तुम्हे मार डालने की योजना,
इन पापियों ने बनाया है।
*. अब जो चला हुँ भितर ,
बाहर मैं ना आऊंगा.!
पिता अर्जुन और कुल की गौरव पर लालछन मैं ना लगाऊंगा।
*. चल पड़ा वो महावीर ,
यम को साथी बनाकर ।
घेरा उसे सात महारथियों
चक्र का अंतिम व्यूह बना कर.!
*.आज समय का चक्र
कुछ यूं चला था,
लकड़बघों के झुंड में
एक सिंह फस गया था.!
*. अस्त्र शस्त्र टूट गए वीर के
पर साहस न छोड़ा था।
रथ के पहिये को चक्र बनाकर उसने
कमर दुर्योधन का तोड़ा था..!
*.लहुलुहान शरीर से भी उसने
महारथियों से अंतिम सांस तक लड़ा था।
सदी का सर्वश्रेष्ठ योद्धा होने का पद ,
कर्ण ,और अर्जुन से छीना था ।
*.उसकी मृत्यु ने यमराज को भी रुलाया था,
अपने परिचय में यमराज को
अर्जुन पुत्र और वशुदेव कृष्ण का भांजा
"अभिमन्यु" नाम बतया था ।
"अभिमन्यु " नाम बताय था।
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