कुछ ख़्वाब रखे हैं सिरहाने,
कुछ अनजाने कुछ पहचाने ॥
इसी वक्त यहाँ आ जाते हैं,
हर रोज मुझे ये समझाने ॥
चल ऐसा कुछ कर जाते हैं,
तू ख़ुद अपने को पहचाने ॥
बुन ऐसे कुछ तू अफसाने,
भर जायें दिल के पैमाने ॥
माथे पे कोई शिकन न हो,
चेहरे पे हों बस मुस्कानें ॥
या रब! कुछ तो रहमत हो,
ये ख़्वाब हैं मेरे बचकाने ॥
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